Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 48
________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में दशांग भोग भोगते हैं। 47 ध्यान रहे, चक्रवर्ती यदि राज्य भोग में मरे तो नियम से सातवें नरक में जाते हैं और यदि राज्य का त्याग कर मुनिव्रत अंगीकार करे तो ऊर्ध्वगामी / स्वर्ग अथवा मोक्ष को प्राप्त होते हैं । ये सभी भोग हमें देखने / भोगने में तो बहुत अच्छे लगते हैं; किन्तु हैं बहुत खतरनाक । पंचेन्द्रिय विषय भोगों को भोगना अथवा भोगने के परिणामों का फल तो अधोगति ही है; अतः सावधान रहकर इनसे विरक्त होने की भावना भाना चाहिये । बलदेव, नारायण व प्रतिनारायण वर्तमान अवसर्पिणी के चतुर्थ काल में तीर्थंकर एवं चक्रवर्तियों के समान ही विशिष्ट पुण्यशाली 9 बलदेव, 9 नारायण एवं 9 प्रतिनारायण हुये हैं। तिलोयपण्णती 138 में उन सभी के नामों का उल्लेख निम्नानुसार मिलता है - विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दिमित्र, राम और पद्म- ये नौ बलदेव हुये हैं। त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुण्डरीक, दत्त, नारायण (लक्ष्मण) और कृष्ण – ये नौ नारायण (विष्णु) हैं तथा अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुंभ, बलि, प्रहरण, रावण और जरासंध – ये नौ प्रतिनारायण (प्रतिशत्रु) हैं। इनके पर्यायान्तर के संबंध में आचार्य यतिवृषभ का मूल कथन निम्नानुसार है। 'उड्ढगामी सव्वे बलदेवा केसवा अधोगामी' 139 अर्थात् सभी बलदेव नियम से ऊर्ध्वगामी (स्वर्ग या मोक्षगामी) होते हैं 138. तिलोयपण्णत्ती, 4/ 524-526 तथा 4 / 1423-1425 139. वही, 4/1448

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