Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 40
________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में 39 त्रिलोकसार'19 एवं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्र 120 में नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव को पन्द्रहवाँ कुलकर बताया है। लोकविभाग 21 एवं आदिपुराण'22 में नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव एवं उनके पुत्र भरत को भी पन्द्रहवें एवं सोलहवें कुलकर के रूप में स्वीकार किया है, इन सभी कुलकरों के लिये आदिपुराण में मनु शब्द का प्रयोग भी किया गया है । ये सभी कुलकर पूर्वभव में विदेह क्षेत्रों में उच्चकुलीन महापुरुष थे, वहाँ पर सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के पहले ही भोगभूमि की आयु बांधकर तीसरे काल में भरत क्षेत्र में उत्पन्न हुये | 123 इन 14 कुलकरों में से कितने ही कुलकरों को जातिस्मरण था और कितने ही अवधिज्ञान के धारक थे। 124 अतः अपने विशिष्ट ज्ञान की सामर्थ्य से प्रजा की विभिन्न समस्याओं का समाधान किया करते थे। भोगभूमि में सदैव कल्पवृक्षों का प्रकाश रहता था; अतः सूर्यचन्द्रादि विमान दिखाई नहीं देते थे। अब कल्पवृक्ष समाप्त हो जाने से वे सूर्यचन्द्रादि दिखाई देने लगे, उन्हें देखकर लोगों को भयंकर भय उत्पन्न हुआ । भोगभूमि में पुत्र-पुत्री का जन्म होते ही माता–पिता का मरण हो जाता था, वे लोग बच्चों का मुख 119. त्रिलोकसार, गाथा-793 120. इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जित्था - जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्र / 2/35/पृ. 54 121. लोकविभाग, 5/122 122. वृषभो भरतेशश्च तीर्थचक्रभृतौ मनू । आदिपुराण, 3/232 123. आदिपुराण, 3/ 207-209 124. वही, 3/210

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