Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में उद्धारपल्य का एक अद्धापल्य होता है। दस कोड़ाकोडी अद्धापल्योपम का एक सागरोपम होता है। ऐसे बीस कोड़ाकोडी सागरोपम का एक कल्पकाल कहा गया है। 20 अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी के विभाग तिलोय पण्णत्ती S8 सर्वार्थसिद्धि”, राजवार्तिक", त्रिलोकसार एवं लोकविभाग में अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी के दस-दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण काल को उनके छह भेदों में विभाजित किया है। अवसर्पिणी के छह विभाग/काल निम्नानुसार है (1) सुषमासुषमा (2) सुषमा (3) सुषमादुषमा (4) दुषमासुषमा (5) दुषमा (6) अतिदुषमा 4 कोड़ाकोड़ी सागर 3 कोड़ाकोड़ी सागर 2 कोड़ाकोड़ी सागर 1 कोड़ाकोड़ी सागर में 42,000 वर्ष कम 21,000 वर्ष 21,000 वर्ष उत्सर्पिणी के छह विभाग इसके विपरीत क्रम में है, जो कि निम्नानुसार है (1) अतिदुषमा 21,000 वर्ष 58. तिलोयपण्णत्ती, 4/320-323 59. सर्वार्थसिद्धि, 3/27/418 / पृ. 166-167 60. तत्त्वार्थ राजवार्तिक, 3/27/ पृ. 388 61. त्रिलोकसार, 781 62. लोकविभाग, 5/5-7 63. तिलोयपण्णत्ती, 4/1576-77

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74