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कालं चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में
(2) दुषमा - 21,000 वर्ष. (3) दुषमासुषमा - 1 कोड़ाकोड़ी सागर में 42,000 वर्ष कम (4) सुषमादुषमा - 2 कोड़ाकोड़ी सागर (5) सुषमा _ - 3 कोड़ाकोड़ी सागर (6) सुषमासुषमा - 4 कोड़ाकोड़ी सागर
उक्त नामों में काल अथवा समय सूचक 'समा' शब्द में 'सु' एवं 'दुर्' उपसर्गों का प्रयोग उनके शुभ और अशुभ का सूचक है। इन उपसर्गों से छहों कालों के नाम की सार्थकता बताते हुये आचार्य जिनसेन लिखते हैं -
समा कालविभाग: स्यात् सुदुसावर्हगर्हयोः' ।
सुषमा दुःषमेत्येवमतोऽन्वर्थत्वमेतयोः ।।84 समा काल के विभाग को कहते हैं। तथा 'सु' और 'दुर् उपसर्ग क्रम से अच्छे और बुरे अर्थ में आते हैं। 'सु' और 'दुर् उपसर्गों को पृथक्-पृथक् समा के साथ जोड़ देने तथा व्याकरण के नियमानुसार 'स' को 'ष' कर देने से सुषमा और दुषमा शब्दों की सिद्धि होती है, जिनका अर्थ क्रम से अच्छा काल और बुरा काल होता है। इस तरह उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के छहों भेद सार्थक नाम वाले हैं। __ये उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी नामक दोनों ही भेद कालचक्र के परिभ्रमण से अपने छहों कालों के साथ-साथ कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की तरह घूमते रहते हैं। अर्थात् जिस तरह कृष्ण पक्ष 64. आदिपुराण, 3/19 65. वही, 3/21