Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 16
________________ 1. आत्मा है। 2. आत्मा नित्य है। 3. आत्मा ही कर्मों को करने वाली है। 4. आत्मा ही कर्मों को भोगने वाली है। 5. आत्मा का मोक्ष होता है। 6. मोक्ष के उपाय है। इस प्रकार मैं आत्मा हूँ यह प्रतीत होने पर आत्म कल्याण हेतु जीवन कैसा होना चाहिए यह जानने के लिए सर्वप्रथम प्रात: उठने एवं सोने की विधि सिखनी चाहिए। प्रात: उठने की विधि जिन भावों में व्यक्ति सोता है, उन भावों में रात्री व्यतीत होती है। अत: रात्री में नवकार के स्मरण पूर्वक सोये हुए व्यक्ति की भावशुद्धि स्वत: ही होती रहती है। सुबह कम से कम सूर्योदय से 48 मिनिट पहले उठे । उठते ही आठ कर्मों का क्षय करने के लिए 8 नमस्कार महामंत्र का हृदय कमल में ध्यान करें। पटम हवइमंगलं नमो (सिदाणं) /एसोपंच नमुक्कारो नमो नमोलोए नमो सव्व साहूर्ण अरिहंताणं आवरियाण उक्झाया मंगलाणं सव्येसिं प्पणासणो सव्व पाव साथ ही एक-एक नवकार गिनते समय एक-एक कर्म क्षय हो रहे हैं, ऐसी भावना करें। चित्र में बताये अनुसार 8 बार नमस्कार महामंत्र हृदय कमल में कल्पना से चिंतन करें। तत्पश्चात् दोनों हाथ की हथेली इकट्ठी कर सिद्धशीला पर 24 तीर्थंकर प्रभु का स्मरण करें। वह इस प्रकार है :

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