Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 14
________________ कल्याणकों से विश्वमंगल जिनके च्यवन कल्याणक से, सृष्टि नवपल्लवित बनें जिनके जन्म कल्याणक से समकित नवपल्लवित बनें जिनके दीक्षा कल्याणक से विरतिधर्म नवपल्लवित बनें जिनके केवलज्ञान कल्याणक से उपयोग नवपल्लवित बनें जिनके निर्वाण कल्याणक से आत्मप्रदेश नवपल्लवित बनें जयवंत रहो, जयवंत रहो, प्रभु के पंचकल्याणक जयवंत रहो। भगवान के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण ये पाँच कल्याणक होते हैं। भगवान ने पूर्व भव में सर्व जीवों को मोक्ष में ले जाने की उत्कृष्ट साधना की जिसके फलस्वरूप चरम भव में च्यवन आदि कल्याणकों में यह विश्व प्रभु के प्रति अहोभाव धारा एवं प्रभु की करुणा, वात्सल्य के महाविस्फोट से शीघ्र मोक्षगामी बनता है। कल्याणक यानि क्या ? कल्याणक यानि परमात्मा की विश्वमंगल भावना का साक्षात्कार । कल्याणक यानि परमात्मा की जगत के जीवों पर बरसती अपार करुणा, अनंत वात्सल्य धारा । कल्याणक यानि परमात्मा के जीवन के महाकल्याणकारी अपूर्व क्षणों का समूह जो कल्याण करे, जो मंगल करे वह कल्याणक | जो कर्मों को काटे, जो कषायों का क्षय करे - 1 • वह कल्याणक । जो मोक्ष दे, जो जीव को शिव बनाए जो जीव को शाता दे, जो आनंद दे कल्याणक कल्पतरु है जो इच्छित को देता है। कल्याणक कामधेनु है जो मनवांछित पूर्ण करता है। कल्याणक चिंतामणी है जो सर्वकामना पूर्ण करता है। कल्याणक में बरसती प्रभु की करुणा से भूलों का भांगाकार, दोषों की बादबाकी, साधना का जोड़कर और गुणों का गुणाकार होता है। अशुभ परमाणु और अशुभ अध्यवसाय शुभ बनते हैं। शुभ से शुद्ध बनते हैं। - • वह कल्याणक । - वह कल्याणक । प्रभु के जीवन की च्यवन से निर्वाण तक की प्रत्येक पल जगत के जीवों के कल्याण के लिए है, मंगल के लिए है। परमात्मा के ऐसे कारुण्य पंचकल्याणकों को मैं अपने समग्र अस्तित्व से, हृदय उर्मियों से, अत्यन्त बहुमान पूर्वक नमस्कार करता हूँ। पद्मनंदी

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