Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 15
________________ MERO मैं कौन हूँ? क्या मैं शरीर हूँ? नहीं, शरीर तो काला, गोरा होता है; मैं तो रूप रहित हूँ। शरीर यहाँ पड़ा रहता है; मैं दूसरे भव में जाता हूँ। शरीर नाशवंत है; मैं शाश्वत हूँ। शरीर साधन है; मैं साधक हूँ। शरीर घर है: आत्मा उसका मालिक है। अर्थात् उसमें रहने वाला है। जैसे बस में आदमी है तो बस और आदमी एक है या अलग? अलग .... तपेली में दूध है तो तपेली और दूध एक है या अलग? __ अलग .... उसी प्रकार शरीर में आत्मा है तो आत्मा और शरीर एक है या अलग? . अलग .... तो अब बताइए ..... आप शरीर है या आत्मा? आत्मा आपको ज्यादा प्रेम किससे है? शरीर से या आत्मा से? आप ज्यादा समय किसके लिए देते हैं? शरीर के लिए या आत्मा के लिए? खाना, पीना, सोना, टी.वी. देखना, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना, गाड़ी में घूमना, डनलप की गादी पर सोना, टेपरिकॉर्ड सुनना, धंधा करना आदि की जरुरत किसको है? शरीर को या आत्मा को ? शरीर को .... तो आप मूर्ख है या समझदार? यदि हम आत्मा होते हुए भी अपना ज्यादा समय शरीर के लिए देते हैं तो मूर्ख है और यदि ज्यादा समय आत्मा के लिए देते हैं तो समझदार है। प्र. : मैं आत्मा हूँ' इस संस्कार को गाढ़ करने के लिए क्या करना चाहिए? उ.: 'मैं आत्मा हूँ' इस संस्कार को गाढ़ करने के लिए निम्न छ: बातों को बार-बार याद करें। (001

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