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२२ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
२१. क्या वह पूरे बीस वर्ष की है ? २२. क्या उसके पास पात्र तथा चीवर पर्याप्त मात्रा में हैं ? २३. उसका क्या नाम है ? २४. उसकी प्रवर्तिनी का क्या नाम है ?'
महासांघिक निकाय के भिक्षुणी विनय में भी इसी प्रकार के प्रश्नों का उल्लेख है। इन प्रश्नों को उपसम्पदा के समय शिक्षमाणा से पूछने की परम्परा थी। प्रश्न उपर्युक्त रीति से ही पूछे जाते थे यद्यपि उनकी रूप-रेखा कुछ भिन्न थी। भिक्षुणी विनय में कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो थेरवादी निकाय के चुल्लवग्ग में नहीं प्राप्त होते । यथा-क्या वह मातृघातिनी है ? क्या वह पितृघातिनी है ? क्या वह अर्हत्घातिनी है ? संघ-भेदिका है ? उसे यह संशय तो नहीं है कि बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया या नहीं ? वह भिक्षु-दूषिका तो नहीं है ? चोर तो नहीं है ? वातिला, पित्तिला, पिण्डिला तो नहीं है ? वह हलवाहिनी, पूयवाहिनी, चक्रवाहिनी तो नहीं है ? वह आर्द्रवर्णा, शुष्कवर्णा, शोणितवर्णा तथा पुरुष-द्वेषिनी तो नहीं है ? ___इन प्रश्नों में अनेक ऐसे प्रश्न थे जिनका उत्तर देने में भिक्षुणी संकोच करती थी। अतः यह विधान बनाया गया कि उपसम्पदा देने के पहले शिक्षमाणा को अनुशासन आदि की शिक्षा देनी चाहिए । तदुपरान्त उन्हें इन प्रश्नों की महत्ता का बोध कराया जाता था तथा उन्हें यह बताया जाता था कि यह समय उनके जीवन का निर्णायक समय है अतः संघ के मध्य इन प्रश्नों का उत्तर संकोचरहित होकर "हाँ" या "नहीं" में देना चाहिए।
तुलना : इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रवेश के समय दोनों संघों में यथासम्भव सावधानी बरती जाती थी। इन प्रश्नों का अत्यधिक महत्त्व था क्योंकि इनके माध्यम से स्त्री के जीवन की, विशेषकर उसके गृहस्थ-जीवन की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली जाती थी। इस बात का प्रयत्न किया जाता था कि संघ में प्रवेश करने वाली नारी नपुसक, दासी, ऋणी या किसो रोग से ग्रस्त न हो । स्त्री-नपुंसकों के प्रवेश से संघ की मर्यादा को
१. चुल्लवग्ग, पृ० ३९१. २. भिक्षुणी विनय, ६३५, ३६. ३. चुल्लवग्ग, पृ० ३९३.
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