Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 226
________________ भिक्षुणी संघ का विकास एवं ह्रास : २०७ १ ૪ । साँची, सारनाथ, कौशाम्बी एवं भाब्रू (जयपुर के पास वैराट) में प्राप्त अशोक के अभिलेखों में उत्कीर्ण “भिक्षुणी" तथा " भिक्षुणीसंघ" शब्द यह स्पष्ट द्योतित करता है कि तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व के समय तक ये स्थल भिक्षुणी केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुके थे । साँची, सारनाथ एवं कौशाम्बी के अभिलेखों में बौद्ध संघ में भेद पैदा करने वाले भिक्षु भिक्षुणियों को चेतावनी दी गयी है भाब्रू अभिलेख में भिक्षु -- भिक्षुणियों को कुछ पुस्तकें पढ़ने एवं उन पर मनन करने की सलाह दी गयी है । सारनाथ परवर्ती काल में भी एक प्रसिद्ध भिक्षुणी केन्द्र के रूप में बना रहा; सारनाथ सम्मितिय निकाय का प्रसिद्ध केन्द्र था । प्रथम शताब्दी ईस्वी ( शक संवत्, ८१) के एक लेख में भिक्षुणी बुद्धमित्रा को "पिटिका" कहा गया है, जो अपने आचार्य बल के समान तीनों पिटकों में पारंगत थी । सम्भवतः यह भिक्षुणियों की शिक्षा का भीं महान केन्द्र था । उत्तर भारत में श्रावस्ती बौद्ध भिक्षुणियों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल था । यहीं सेठ अनाथपिण्डिक का प्रसिद्ध जेतवन विहार था जहाँ बुद्ध प्रायः विश्राम किया करते थे । बुद्ध ने सबसे अधिक वर्षावास यहीं व्यतीत किया था श्रावस्ती (आज का सहेठ - महेठ) कोशल का प्रमुख शहर था । बुद्धकालीन कोशल नरेश प्रसेनजित के साथ ही भिक्षुणी क्षेमा का प्रसिद्ध दार्शनिक वार्तालाप हुआ था । भिक्षुणी क्षेमा ने नरेश के गम्भीर दार्शनिक प्रश्नों का विद्वत्तापूर्ण उत्तर दिया था । श्रावस्ती में ही भिक्षुणियों का प्रसिद्ध राजकाराम विहार था । सम्भवतः प्रसेनजित ने गौतमी महाप्रजापति के लिए एक विहार बनवाया था, जिसके भग्न खण्डहरों को फाहियान तथा ह्व ेनसांग' दोनों ने देखा था । ह्व ेनसांग यहाँ 1. Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol. I. P. 160, 2. Ibid, P. 161. 3. Ibid, P. 159. 4. Ibid, P. 172. 5. List of Brahmi Inscriptions, 925. ६. संयुक्त्त निकाय, ४२ / १ . 7. Buddhist Records of the Western World, Vol. I, p. 25. 8. Ibid, Vol III. P. 260. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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