Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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२२४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ पुष्पवती-सम०, १५७; आव० नि०, २६३. पुरन्दरयशा-निशीथ विशेष चूर्णि, चतुर्थ भाग, ५७४१; उत्तराध्यन चूर्णि,
पृ० ७३. मनोहरी-आव० चूर्णि, प्रथम भाग, पृ० १७६-७७. अमला-सम० १५७, आव० नि०, २६३. यक्षिणी-वही। कमलामेला-बृहत्कल्पभाष्य, पीठिका, १७२; आव० चूर्णि, प्रथम भाग,
पृ० ११२-१३. गान्धारी-अन्तकृतदशांग, ५।३. जाम्बवती-वही, ५।६. द्रौपदी-ज्ञाताधर्मकथा, १११६. पद्मावती-अन्तकृतदशांग, ५।१. मूलदत्ता-वही, ५।१०. मूलश्री-वही, ५।९. राजीमती-उत्तराध्ययन सूत्र, २२वाँ अध्याय । रूक्मिणी-अन्तकृतदशांग, ५।८. लक्ष्मणा-वही, ५।४. सत्यभामा-वही, ५७. सुकुमालिका-बृहत्कल्पभाष्य, पंचम भाग, ५२५४-५९; निशीथ विशेष
चूणि, द्वितीय भाग, २३५१-५६. सुकुमालिका-ज्ञाताधर्मकथा, १११६. गोपालिका-वही। सुसीमा-अन्तकृतदशांग, ५।५. सुव्रता-ज्ञाताधर्मकथा, १११४. सुभद्रा-निरयावलिया, ४।३. पुष्पचूला-सम०, १५७; आव० नि०. २६३.
ज्ञाताधर्मकथा के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम वर्ग में काली, राजी, रजनी, विद्युत, मेघा; द्वितीय वर्ग में शुंभा, निशुंभा, रंभा, निरंभा, मदना; तृतीय वर्ग में इला, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घना, विद्युता; चतुर्थ वर्ग में रूपा, सुरूपा, रूपांशा, रूपवती, रूपकान्ता, रूपप्रभा; पंचम वर्ग में कमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना, रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा, पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा, भारिका, पद्मा, वसुमती, कनका, कनकप्रभा,
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