Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 273
________________ मूलग्रन्थ-सूची अंगुत्तर निकाय : हिन्दी अनुवाद-भदन्त आनन्द कौशल्यायन महाबोधि सभा, कलकत्ता। अन्तकृतदशांग : व्याख्याकार-श्री ज्ञानमुनिजी महाराज, आचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समिति, जैन स्थानक लुधियाना, संवत् २०२७। अष्टप्राभृत : कुन्दकुन्दाचार्यकृत-श्री शान्तिवीर दिगम्बर जैन संस्थान, श्री शान्तिवीर नगर, राजस्थान । आचारांग सूत्र ': हिन्दो अनुवाद-अमोलक ऋषि, श्री अमोलक जैन ज्ञानालय, धूलिया, महाराष्ट्र १९६०। आवश्यक चूणि (प्रथम एवं : श्री ऋषभदेवजी केशरीमल जी श्वेताम्बर उत्तर भाग) सस्था, रतलाम, १९२९ । आवश्यक नियुक्ति दीपिका : माणिक्यशेखरसूरिविरचिन-जैनग्रन्थमाला, (प्रथम एवं द्वितीय भाग) गोपीपुरा सूरत । उत्तराध्ययन सूत्र : सम्पा०-साध्वी चन्दना, सन्मति ज्ञान पीठ, आगरा, १९७२ । उत्तराध्ययन वृत्ति(दो भाग में) : देवचन्द लाल भाई जैन पुस्तकोद्धार समिति झावेरी बाजार, बम्बई १९१६ । उपनिषद् संग्रह : मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी (प्रथम संस्करण), १९७० । ऋग्वेद : सम्पादक-सान्तबलेकर, भारत मुद्रणालय, सतारा, १९४०। ओघनियुक्ति (वृत्ति) : भद्रबाहुकृत, आगमोदय समिति, १९१९ । कप्पसुत्तं (कल्पसूत्र) प्राकृत भारती, जयपुर, १९७७ । कप्पसुत्तं (बृहत्कल्पसूत्र) : सम्पा०-मुनिश्री कन्हैयालाल जी 'कमल' आगम अनुयोग प्रकाशन, सांडेराव, राजस्थान, १९७७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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