Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 247
________________ २२८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ कंचलदेवी-जैन शिलालेखसंग्रह, चतुर्थ भाग, पृ. ३७८. लवणश्री-वही, पंचम भाग, पृ० ३३. सोना-वही, पृ० ११८. देवगढ़ (झाँसी, उत्तर प्रदेश) से प्राप्त एक भग्न शिलापट्ट पर आर्यिका सिरिमा, पद्म श्री, संयम श्री, ललित श्री, रत्न श्री तथा जय श्री नाम अंकित है। -वही, पृ० ११९. श्रीमती गन्ति-वही, प्रथम भाग, पृ० २८८. मानकब्बे गन्ति-वही। राज्ञीमती गन्ति-वही, पृ० ३१७. सायिब्बे कन्तियर-वही, पृ० ३२१. पोल्लब्बे कन्तियर-वही, पृ० ३२५. कण्णब्बे कन्ति-वही, पृ० ३७३. मालब्बे-वही। मेकुश्री-वही, पंचम भाग, पृ० ४७. देवश्री-वही, प्रथम भाग, पृ० २२६. गौरश्री-वही । सोमश्री-वही। कनकधी-वही। मदनश्री-वही, तृतीय भाग, पृ० २२४. पेण्डरवाच मुत्तब्बे-वही, चतुर्थ भाग, पृ० २१७. जकोव्वे-वही, पृ० २५९. नागवे-वही, पृ० ३७२. नादोव्वे-वही, पृ० ३५६-५७. यिल्लेकन्ति-वही, पृ० २९६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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