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भिक्षुणी - संघ का विकास एवं स्थिति : २०९
पश्चिम भारत में प्रसार
पश्चिम भारत में भी बौद्ध भिक्षुणियों का प्रसार प्रथम शताब्दी ईस्वी तक पूर्ण हो चुका था । कन्हेरी, कार्ले, भाजा, कुदा, नासिक, जुन्नार आदि से प्राप्त अभिलेखों से यह प्रतीत होता है कि ये स्थल भिक्षुणियों के प्रसिद्ध केन्द्र के रूप में कई शतियों तक वर्तमान रहे । कन्हेरी से प्राप्त एक अभिलेख' में एक भिक्षुणी को " थेरी" कहा गया है । यह विशेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी अन्य अभिलेख में हम भिक्षुणी के लिए " थेरी" शब्द नहीं पाते । अभिलेखों में थेर, थेर भदन्त अथवा भदन्त का सम्मानसूचक विशेषण केवल भिक्षुओं के लिए प्रयुक्त हुआ है । कन्हेरी में भद्रायणीय निकाय के आचार्य थे ।
जुन्नार भी भिक्षुणियों का प्रमुख स्थल था । यहाँ धर्मोत्तरीय शाखा (थेरवादी निकाय) के भिक्षुणी - विहार बनवाये जाने का उल्लेख है ! सम्भवतः श्रावस्ती के राजकाराम विहार के समान यहाँ भी भिक्षुणियाँ स्थायी रूप से निवास करती थीं ।
दक्षिण भारत में प्रसार
बौद्ध भिक्षुणियों का दक्षिण भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध स्थल अमरावती था । इसका विकास सातवाहनों के युग अर्थात् लगभग द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से प्रारम्भ हुआ था जो कई शताब्दियों तक चलता रहा । यह चेतियवन्दक ( महासांघिक ) निकाय का प्रसिद्ध केन्द्र था । अमरावती व्यापारिक दृष्टि से भी एक महत्त्वपूर्ण स्थल था । यहाँ भिक्षुणियों द्वारा दिये गये दानों की एक लम्बी सूची मिलती है । यहाँ से प्राप्त भिक्षुणियों से सम्बन्धित कुछ अन्य तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं । यहाँ एक भिक्षुणी बोधि को “भदन्ती” विशेषण से सम्बोधित किया गया है जो कन्हेरी के “थेरी” शब्द के समान ही महत्त्वपूर्ण है । भिक्षुणी के लिए “भदन्ती" शब्द का प्रयोग अन्यत्र कहीं नहीं मिलता । यह क्षेत्र शिक्षा का भी एक प्रमुख केन्द्र था । विनयधर आर्य पुनर्वसु की शिष्या समुद्रिका का उल्लेख है जिसे " उपाध्यायिनी "" कहा गया है । स्पष्ट है कि भिक्षुणियाँ विद्या के क्षेत्र में
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1. List of Brahmi Inscriptions, 1006.
2. Ibid, 1171.
3. Ibid, 1240.
4. Ibid, 1286.
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