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आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ३५ पिण्डनियुक्ति' में आहार-प्राप्ति के ४२ तथा आहार-ग्रहण करने (परिभोग) के ५ दोष बताये गये हैं। आहार के ४२ दोषों में १६ उद्गम के, १६ उत्पादन के तथा १० एषणा के हैं।
उद्गम के १६ दोष (१) आधाकर्म-विशेष साधू के उद्देश्य से आहार बनाना, (२) औद्देशिक-भिक्षुओं के उद्देश्य से आहार बनाना, (३) पूतिकर्म-शुद्ध आहार को अशुद्ध आहार से मिश्रित करना, (४) मिश्रजात-अपने लिए व साधू के लिए मिलाकर आहार बनाना, (५) स्थापना-साधू के लिए कोई खाद्य पदार्थ अलग रख देना, (६) प्राभृतिका-साध को निकट के गावों में आया जानकर भोज के दिन को इधर-उधर करना, (७) प्रादुकरण-अन्धकारयुक्त स्थान में दीपक आदि का प्रकाश करके भोजन बनाना, (८) क्रीत-खरीदा हुआ आहार (९) प्रामित्य-उधार लाया हुआ, (१०) परिवर्तित-अदला-बदली करके लाया हुआ, (११) अभिहत-साधू को दूर से लाकर आहार देना, (१२) उद्भिन्न-साधु के लिए लिप्त पात्र का मुंह खोलकर घृत आदि देना, (१३) मालापहृत-ऊपर की मंजिल या सीढ़ी से उतर कर देना, (१४) आच्छेद्य-दुर्बल से छीन कर देना, (१५) अनिसृष्ट-सांझे की वस्तु को दूसरों की आज्ञा के बिना देना, (१६) अज्झोयर-साधू को आया हुआ जानकर अपने लिए बनाये जाने वाले भोजन में और मात्रा बढ़ा देना। ___ उत्पादन के १६ दोष:-(१) धात्री-धाय की तरह गृहस्थ के बालकों को प्रसन्न करके आहार लेना, (२) दूती-संदेशवाहक बनकर आहार लेना, (३) निमित्त-शुभाशुभ का निमित्त बताकर आहार लेना, (४) आजीव-आहार के लिए जाति-कुल आदि बताना, (५) वनीपक-गृहस्थ की प्रशंसा करके भिक्षा लना, (६)चिकित्सा-औषधि आदि बताकर आहार लेना, (७) क्रोध-क्रोध करके या शापादि का भय दिखाकर आहार लेना, (८) मान-अपना प्रभुत्व बताकर आहार लेना, (९) माया-छल-कपट से आहार लेना, (१०) लोभ-सुस्वादु भिक्षा के लिए अधिक गवेषणा करना, (११) पूर्वपश्चात्संस्तव-गृहस्थ के माता-पिता अथवा सास-ससुर से अपना परिचय बताकर भिक्षा लेना, (१२) विद्या-विद्या प्रयोग करके भिक्षा लेना, (१३) मन्त्र-मन्त्र-प्रयोग से आहार लेना, (१४) चूर्ण
१. पिण्डनियुक्ति, ६६९. २. वही, ९२-९३. ३. वही, ४०८-४०९.
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