Book Title: Jain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Author(s): Arun Pratap Sinh
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 204
________________ भिक्षु भिक्षुणी सम्बन्ध एवं संघ में भिक्षुणी को स्थिति : १८५ यही नहीं, कुछ विशेष परिस्थितियों में तो अचेलक (निर्वस्त्र ) भिक्षु भी भिक्षुणियों के साथ उपाश्रय में रह सकता था । जैते - विक्षिप्तचित्त, दृप्तचित्त, यक्षाविष्ट और वातरोग आदि से उन्मत्त भिक्षु के साथ उसकी सहायता के लिए यदि कोई भिक्षु न हो, तो भिक्षुणी उसकी सहायता के लिए रह सकती थी । इसी प्रकार साध्वी के पुत्र के दीक्षित होने के अवसर पर यदि उस समय अन्य कोई साध्वी न हो, तो उसके साथ कोई साधु ठहर सकता था ।" आहार के सम्बन्ध में भी कुछ विशेष परिस्थितियों में छूट दी गयी थी । यदि भिक्षुणी के साथ दुराचारी व्यक्तियों ने बलात्कार किया हो और वह कहीं आने-जाने में असमर्थ हो, तो वह दूसरे भिक्षु भिक्षुणियों से भोजन पाने की अधिकारिणी थी। संघ की तरफ से दूसरे भिक्षुभिक्षुणियों को यह निर्देश दिया गया था कि वे उसके लिए भी आहार का प्रबन्ध करें | वार्तालाप के सम्बन्ध में भी परिस्थितियोंवश नियमों में छूट दी गयी थी । यद्यपि अकेले साधु-साध्वी को आपस में बातचीत करने का निषेध था, परन्तु कुछ अवसरों पर वे ऐसा कर सकते थे— (क) यदि भिक्षु उपयुक्त मार्ग भूल गया हो, तो किसी भिक्षुणी से रास्ता 'पूछ सकता है । (ख) ऐसी ही परिस्थिति में वह भी भिक्षुणी को रास्ता बता सकता है। (ग) भिक्षु चारों प्रकार का आहार देते समय वार्तालाप कर सकता है । (घ) इसी तरह वह चारों प्रकार का आहार ग्रहण करते समय बातचीत कर सकता है । उपर्युक्त आपवादिक स्थितियों में यदि कोई भिक्षु अकेली भिक्षुणी से वार्तालाप करता है, तो उसका यह कार्य जैन संघ के नियमों का अतिक्रमण करना नहीं माना गया था । किन्तु सामान्य अवस्था में यदि भिक्षुणी १. स्थानांग, ५ / ४१७. २. बृहत्कल्पभाष्य, भाग चतुर्थ, ४१३५. ३. स्थानांग ४/२९०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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