________________
यात्रा एवं आवास सम्बन्धी नियम : ८१
दिगम्बर भिक्षुणियों के उपाश्रय सम्बन्धी नियम : श्वेताम्बर भिक्षुणियों के समान दिगम्बर भिक्षुणियों को भी उपयुक्त उपाश्रय में ठहरने का निर्देश दिया गया था । जीव-जन्तुओं से युक्त' तथा उद्देश्यपूर्वक निर्मित ' उपाश्रय में ठहरना निषिद्ध था । भिक्षुणियों को संदिग्ध चरित्र वाले गृहस्थों के उपाश्रयों में ठहरने का भी निषेध किया गया था । उपाश्रय में अकेली भिक्षुणी का ठहरना निषिद्ध था । उन्हें दो-तीन या इससे अधिक की संख्या में ही एक साथ ठहरने का विधान किया गया था। संघ में भिक्षुणियों की रक्षा का प्रश्न सर्वोपरि था, अतः उन्हें परस्पर मिल कर एवं परस्पर रक्षा में तल्लीन तथा लज्जा, मर्यादा के साथ ठहरने की सलाह दी गई थी ।"
दोनों सम्प्रदायों के आवास सम्बन्धी इन नियमों से स्पष्ट है कि जैन भिक्षु एवं भिक्षुणियों को उस उपाश्रय या विहार में रहना निषिद्ध था, जो उनके निमित्त बना हो या उनके निवास के निमित्त उसकी रँगाई, पुताई या मरम्मत की गई हो । सामान्यतया गृहस्थों के खाली मकानों, देवालयों आदि में ही उनके ठहरने का विधान था, परन्तु ये नियम केवल आदर्श मात्र ही प्रतीत होते हैं । जैन भिक्षुओं के निवास के लिए गुफाओं या विहारों के निर्माण के उल्लेख ईसा पूर्व की शताब्दियों से ही प्राप्त होने लगते हैं । मथुरा के एक शिलालेख से " ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के मध्य के एक जैन मन्दिर के विद्यमान होने का प्रमाण प्राप्त होता है । इसमें उत्तरदासक नामक एक श्रावक द्वारा एक पासाद-तोरण समर्पित किये जाने का उल्लेख है । इसी प्रकार भदन्तजयसेन की अन्तेवासिनी धर्मघोषा द्वारा एक पासाद के दान का उल्लेख है। इसी प्रकार एक दूसरे उत्कीर्ण शिलालेख पर वासु नामक गणिका द्वारा एक अर्हत मन्दिर, सभा भवन ( आयाग - सभा), प्रपा (प्याऊ ) और एक शिलापट्ट के समर्पित किये जाने का उल्लेख है ।° मथुरा संग्रहालय के ही एक खण्डित आयाग-पट्ट पर
१. मूलाचार, ९ / १९.
२ . वही, १० / ५८- ६०.
३. वही, ४/१९१.
४. वहौ, ४ (१८८.
5. A List of Brahmi Inscriptions, 93.
6. Ibid, 99.
7. Ibid, 102.
६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org