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१४८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ ___३ ५+६+९ जो भिक्षुणी अकेले ग्रामान्तर को जाये,
अकेली नदी पार करे, अकेली रात में प्रवास करे। जो भिक्षुणी समग्र संघ द्वारा धर्म, विनय और बुद्धोपदेश से अलग की गयी भिक्षुणी को गण की अनुमति के बिना अपनी सहयोगिनी बनावे। जो भिक्षुणी आसक्त होकर कामुक पुरुष के हाथ से खाद्य-पदार्थ ग्रहण करे । जो भिक्षुणी अन्य भिक्षुणी को कामुक पुरुष के हाथ से खाद्य-पदार्थ ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करे। जो भिक्षुणी किसी स्त्री के संदेश को पुरुष से तथा पुरुष के संदेश को स्त्री से कहे यथा-तुम जार (उप-पति) बन जाओ, पत्नी बन जाओ, आदि। ज़ो भिक्षुणी दूषित चित्त से दूसरी भिक्षुणी पर निम्ल पाराजिक का दोषारोपण करे, जिससे वह ब्रह्मचर्य से च्युत मानी जाये, परन्तु बाद में वह दोष निराधार साबित हो । जो भिक्षुणी बुद्ध, धर्म तथा संघ का प्रत्याख्यान करे तथा तीन बार मना करने पर भी न माने। जो भिक्षुणी किसी अभियोग के सिद्ध हो जाने पर भिक्षुणियों तथा भिक्षुणी-संघ की निन्दा करे तथा तीन बार मना करने पर
भी न माने। - १२ १७
जो भिक्षुणी प्रतिकूल आचरण करे, भिक्षुणीसंघ का उपहास करे, एक दूसरे के अपराधों का गोपन करे तथा तीन बार मना
करने पर भी न माने । १३ १८ .
जो भिक्षुणी दूसरी भिक्षुणियों को पापाचार के लिए प्रोत्साहित करे।
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