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संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १४९
जो भिक्षुणी संघ में भेद डालने का प्रयत्न करे तथा तीन बार मना करने पर भी न माने। जो भिक्षुणी संघ-भेदक भिक्षुणी का समर्थन या अनुमोदन करे तथा तीन बार मना करने पर भो न माने ।
१६ १६ जो भिक्षुणी दुर्वचनभाषी (दुब्बचजातिका)
हो तथा किसी प्रकार की शिक्षाप्रद बातों
को न सुने। १७ x
जो भिक्षुणो दुराचारी होकर कुलों को दुषित करे और अन्य भिक्षणियों द्वारा वहाँ रहने के लिए निषेध किए जाने पर भी
न माने। हम देखते हैं कि थेरवादी भिक्षुणियों के १७ संघादिसेस तथा महासांघिक भिक्षणियों के १९ संघातिशेष थे। थेरवादी निकाय का १७वां संघादिसेस महासांघिक निकाय में नहीं प्राप्त होता । थेरवादी भिक्खुनी संघादिसेस का दूसरा नियम कुछ शब्द परिवर्तन के साथ महासांघिक के ७वें तथा ८वें नियम में प्राप्त होता है। इसी प्रकार थेरवादी संघादिसेस का तीसरा नियम महासांघिक के ५वें, वें तथा ९वें संघातिशेष में प्राप्त होता है।
थेरवादी भिक्षुणियों के १७ संघादिसेस में ९ प्रथम आपत्ति (पठमापत्तिक) तथा ८ यावततियं (तीन बार वाचना करने पर प्रभावी) से प्रभावी होने वाले हैं। थेरवादी संघादिसेस का छठा संघादिसेस प्रथम आपत्ति के वर्ग में आता है, परन्तु यही नियम महासांघिकों के “यावततृतीयक' वर्ग में आता है।
इसके अतिरिक्त, दोनों निकायों के संघादिसेस ( संघातिशेष ) के सम्बन्ध में एक अन्य अन्तर द्रष्टव्य है।
थेरवादी विनय में इसे 'संघादिसेस' कहा गया है। इस दण्ड को पूरा संघ मिलकर ही दे सकता था तथा वही इसका निराकरण भी कर सकता
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