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१६० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ १२१ २७ जो भिक्षुणी संचित (संनिधिकारक) भोजन
करे। १२२ २५ जो भिक्षुणी बिना दिया हुआ आहार
ग्रहण करे। जो भिक्षणी दूसरी भिक्षणी को आश्वासन देकर भी साथ में भिक्षाटन के लिए न ले जाये। जो भिक्षुणी गृहस्थ के भोजन-गृह में जाकर
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बैठे।
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जो भिक्षुणी पुरुष के साथ एकान्त में आसन पर बैठे। जो भिक्षुणी पुरुष के साथ अकेले गुप्त रूप से बैठे। जो भिक्षुणी निमन्त्रित होने पर सामने बैठी भिक्षुणी को साथ में न ले जाये । स्वस्थ भिक्षुणी को पुनः प्रवारणा तथा नित्य प्रवारणा (रोगी होने पर पथ्यादि का दान) के अतिरिक्त चातुर्मास के आहार आदि दान को ग्रहण करने का विधान था, जो भिक्षुणी इसका अतिक्रमण करे । जो भिक्षुणी बिना कार्य के सेना-प्रदर्शन को देखे । जो भिक्षुणी कार्य होने पर भी सेना में दोतीन रात से अधिक रहे। जो भिक्षुणी वहाँ रहते हुए भी रण-क्षेत्र या सेना-व्यूह देखने जाये। जो भिक्षुणी मद्य-पान करे । जो भिक्षुणी उँगली से गुदगुदाये । जो भिक्षुणी जल में क्रीड़ा करे । जो भिक्षुणी किसी का अनादर करे । जो भिक्षुणी किसी भिक्षुणी को भयभीत करे।
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