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संगठनात्मक व्यवस्था एवं दण्ड-प्रक्रिया : १७३ (ग) द्वेषवश किसी दूसरी भिक्षुणी के ऊपर झूठा पाराजिक का दोषारोपण करे, तो मानत्त प्रायश्चित्त ।
(घ) जो भिक्षुणी तीन बार मना करने पर भी बुद्ध, धर्म तथा संघ का प्रत्याख्यान करे, तो मानत्त प्रायश्चित्त ।
(ङ) संघ-भेद का प्रयत्न करने वालो भिक्षुणी को तथा संघ-भेदक का अनुसरण करने वाली भिक्षुणी को मानत्त प्रायश्चित्त ।
(च) संघ आदि को सूचित किये बिना जो चोरनी या वंध्या को भिक्षुणी बनाये, तो मानत्त प्रायश्चित्त । __ (छ) गुप्त रूप से भिक्षुणी-संघ के प्रति द्वेष रखने वाली, एक दूसरे की बुराइयों को छिपाने वाली तथा इस कार्य को प्रोत्साहन देने वाली . भिक्षणी को मानत्त प्रायश्चित्त"।
(ज) जो गर्भिणी या दूध पीते बच्चे वाली माँ को भिक्षुणी बनाये, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त ।
(झ) जो भिक्षुणो षड्धर्मों का सम्यक् पालन किये बिना शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये या सीख लेने पर भी संघ की अनुमति के बिना भिक्षुणी बनाये, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त ।
(ज) १२ वर्ष से कम आयु की विवाहित शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त ।।
(ट) २० वर्ष से कम आयु की अविवाहित शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त।
(ठ) जो संरक्षक की अनुमति के बिना शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्ती ।
१. पातिमोक्ख, भिक्खुना संघादिसेस ८, ९. २. वही, १०. ३. वही, १४, १५. ४. वही, २. ५. वही, १२, १३. ६. वही, भिक्खुनी पाचित्तिय, ६१-६२. ७. वही, ६३, ६४. ८. वही, ६५, ६६, ६७. ९. वही, ७१, ७२, ७३. १०. वही, ८०.
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