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१.० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ उसे अपने गुरु थेरभदन्त बल के समान योग्य बताया गया है। इसी प्रकार साँची से प्राप्त एक अभिलेख (Sanchi Buddhist Stupa Inscription) में अविषिणा नामक भिक्षुणी को "सूतातिकिनी" कहा गया है-अर्थात् या तो वह सूत्रों को ज्ञाता थी या सुत्तपिटक में पारंगत थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध भिक्षुणियाँ अध्ययन में गहरी रुचि रखती थीं और बौद्ध ग्रन्थों का सम्यक् अनुशीलन कर उनमें पारंगत हुआ करती थीं। उपदेश एवं अध्यापन
बौद्ध संघ के नियमों के अनुसार भिक्षुणियों को प्रति १५वें दिन भिक्षुसंघ से उवाद (उपदेश) सुनने के लिए जाना पड़ता था। स्पष्ट है, भिक्षु ही भिक्षुणियों को उपदेश देने का अधिकारी था। भिक्षुणी किसी भिक्षु को उपदेश नहीं दे सकती थी, परन्तु वह भिक्षुणी-संघ की भिक्षुणियों को तथा गृहस्थ उपासक-उपासिकाओं को धर्मोपदेश दे सकती थी। ...
भिक्षुणी शुक्ला द्वारा महती सभा में धर्मोपदेश करने का उल्लेख है. जैसे पथिकगण वर्षा के जल का आनन्दपूर्वक पान करते हैं, उसी प्रकार शुक्ला के मधुर तथा ओजपूर्ण धर्मोपदेश को जन-समुदाय ग्रहण करता है ।
भिक्षणी पटाचारा के उपदेश को अमोघ बताया गया है।४ पटाचारा ने अपने उपदेश से अनेक दुःखी नारियों को बौद्ध-संघ में प्रवेश के लिए उत्साहित किया था। इसी प्रकार ऋषिदासी धर्मोपदेश करने में अत्यन्त कुशल थी।६ भिक्षुणी क्षेमा ने विजया को धातु, आयतन, आर्य-सत्य, इन्द्रिय, बल, बोध्यंग, आर्य-मार्ग का उपदेश दिया था। इसी प्रकार वडढेसी को एक भिक्षुणी ने स्कन्ध, आयतन और धातुओं का उपदेश
१. List of Brahmi Inscriptions, 925. २. Ibid, 319,352. ३. "तञ्च अप्पटिवानिय असेचनकमोजवं पिवन्ति मने सप्पा वलाहकमिवद्धगू"
-थेरीगाथा, गाथा, ५५. ४. "मोघो अय्याय ओवादो" -थेरी गाथा, गाथा, १२६. ५. वही, परमस्थदीपनी टीका, ४८,५०.... ६. "धम्मदेसना कुसला"-वही, गाथा, ४०४. ७. वही, गाथा, १७०-७१.
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