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तृतीय अध्याय
यात्रा एवं आवास सम्बन्धी नियम
यात्रा सम्बन्धी नियम
जैन भिक्षुणी के यात्रा सम्बन्धी नियम : अन्य नियमों की तरह यात्रा के सम्बन्ध में भी भिक्षु भिक्षुणियों के नियम प्रायः समान थे। भिक्षुणियों को वर्षाकाल के चार महीने को छोड़कर शेष आठ महीने (ग्रीष्म तथा हेमन्त ऋतु में) एक ग्राम से दूसरे ग्राम (गामाणुगामं) विचरण करने का निर्देश दिया गया था ।" उनकी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य जन-सामान्य को धर्मोपदेश करना तथा स्थान- विशेष से अपनी आसक्ति तोड़ना होता था ।
यात्रा के समय भिक्षुणी को अपने उपयोग से सम्बन्धित सभी आवश्यक उपकरणों को अपने साथ रखने का निर्देश दिया गया था । 2 यात्रा के समय उन्हें ग्राम में एक रात तथा नगर में पाँच रात तक निवास करने का विधान था । परन्तु बृहत्कल्पसूत्र में इस नियम में कुछ परिवर्तन दिखाई पड़ता है । भिक्षुणियाँ सपरिक्षेप और अबाहिरिक ग्राम तथा नगर में हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में दो मास तथा सपरिक्षेप और सबाहिरिक ग्राम तथा नगर में हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में अधिक से अधिक चार मास तक रह सकती थीं। जिस ग्राम अथवा नगर के चारों ओर पाषाण, ईंट, मिट्टी, काष्ठ आदि का अथवा खाईं, तालाब, नदी, पर्वत या दुर्ग का परिक्षेप ( प्राकार) हो तथा उसके अन्दर ही घर आदि बसे हों, उसे सपरिक्षेप और अबाहिरिक ग्राम या नगर कहा जाता था तथा जिस ग्राम आदि के चारों ओर पूर्वोक्त प्रकार के प्राकारों में से किसी एक प्रकार का प्राकार हो तथा उसके बाहर भी घर आदि बसे हों, उसे सपरिक्षेप और बाहिरिक ग्राम तथा नगर कहा जाता था ।
१. बृहत्कल्पसूत्र, १ | ३८.
२. आचारांग, २/२/३/८.
३. कल्पसूत्र, ११९.
४. बृहत्कल्पसूत्र. १ / ८- ९.
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