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द्वितीय अध्याय
आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम
जैन भिक्षुणियों के आहार सम्बन्धी नियम जैन संघ में भोजन, वस्त्र, पात्र आदि के बारे में भिक्षुणियों के लिए अलग से नियम निर्धारित नहीं किये गये थे । नियमों के प्रसंग में "भिक्ख वा भिक्खुणी वा" तथा "निग्गन्थ वा निम्गन्थी वा" शब्द से यह स्पष्ट होता है कि भिक्षु भिक्षुणियों के लिए प्रायः समान नियमों की व्यवस्था थी।
भिक्षुणियों की भिक्षावृत्ति की तुलना भ्रमर से की गयी है। जिस प्रकार भ्रमर फूलों को किसी प्रकार की पीड़ा न देता हुआ उसके रस को ग्रहण कर अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर लेता है, उसी प्रकार भिक्षु-भिक्षुणियों को गृहस्थों को किसी प्रकार की पीड़ा न देते हुए उनके द्वारा बनाये गये भोजन में से अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर लेने का निर्देश दिया गया था।' उन्हें स्वादिष्ट भोजन की लालच में किसी सम्पन्न घर में जाने का निषेध था, अपितु उन्हें सलाह दी गयी थी कि वे सभी घरों से थोड़ाथोड़ा भोजन ग्रहण करें। यद्यपि एक ही घर से भी भोजन ग्रहण किया जा सकता था।
यदि वर्षा हो रही हो, घना कुहरा पड़ रहा हो, आँधी चल रही हो या टिड्डी आदि जीव-जन्तु इधर-उधर घूम रहे हों तो ऐसे समय भिक्षावृत्ति के लिए जाने का निषेध किया गया था। जिस स्वामी के उपाश्रय (शय्यातर) में भिक्षुणी रह रही हो, उसके घर से भिक्षा ग्रहण करना निषिद्ध था। दूसरे के घर का आहार भी यदि शय्यातर के यहाँ आ जाय, तब भी वह उसके यहाँ से भोजन नहीं ले सकती थी। भिक्षा-वृत्ति के लिए भिक्षुणी को अकेले जाना निषिद्ध था। उसे दो या तीन १. दशवकालिक, १/२-४. २. वही, ८/२३. ३. वही, ५/१/८. ४. बृहत्कल्प सूत्र २/१३.
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