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२० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
(त) ओबद्ध (बंधक) (थ) भयए (नौकर) (द) सेहनिफ्फोडिय (अपहृत) (ध) गुम्विणी (गर्भिणी) (न) बालवच्छा (छोटे बच्चे वाली स्त्री)
इसके अतिरिक्त ऐसी स्त्रियों को प्रवेश नहीं दिया जाता था जिन्हें अपने संरक्षक (पिता-माता, पति अथवा पुत्र) की अनुज्ञा न मिली हो। ___ संघ-प्रवेश के समय उपयुक्त नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता था फिर भी अपवादस्वरूप इन नियमों के उल्लंघन के उल्लेख प्राप्त होते हैं। निरयावलिसूत्र' में सुभद्रा का उल्लेख है जिसने अपने पति के आज्ञा के विरुद्ध दीक्षा ग्रहण की थी। स्थानांग के अनुसार गर्भिणी स्त्री संघ-प्रवेश की अधिकारिणी नहीं थी, फिर भी जैनग्रन्थों में ऐसी अनेक स्त्रियों का उल्लेख है जिन्होंने गर्भावस्था में दीक्षा ग्रहण की थी। मदनरेखा' दीक्षा ग्रहण करने के समय गर्भवती थी क्योंकि उस समय अपने पति की हत्या कर दिये जाने के कारण वह जंगल में भाग गई थी और वहीं उसने दीक्षा ली थी। पद्मावती का पुत्र करकण्डु तथा यशभद्रा का पुत्र क्षुल्लक कुमार दीक्षा ग्रहण करने के बाद ही उत्पन्न हुए थे । केसी एक भिक्षुणी" का ऐसा पुत्र था जो बहत्कल्पभाष्यकार के अनुसार विना पुरुष के संसर्ग के ही उसके गर्भ में आ गया था और दीक्षा के उपरान्त पैदा हुआ था । इन उदाहरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि परिस्थितियों के अनुसार नियमों में कुछ परिवर्तन कर दिया जाता था। __ बौद्ध भिक्षुणी-संघ में प्रवेश सम्बन्धी अयोग्यता : यह प्रयत्न किया जाता था कि शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से विकृत नारियाँ संघ में प्रवेश न ले सकें। रोगिणी तथा ऋणग्रस्त नारी का संघ-प्रवेश निषिद्ध था । अयोग्य नारियों के निवारण हेतु ही प्रवेश के समय बौद्ध भिक्षुणी-संघ में प्रश्न पूछने की परम्परा थी तथा प्रश्नों की कसौटी पर खरा उतरने पर ही उन्हें उपसम्पदा प्रदान की जाती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध ।
१. निरयावलि सूत्र, तीसरा वर्ग । २. उत्तराध्ययन नियुक्ति, पृ० १३६-४०. ३. आवश्यक चूर्णि, भाग द्वितीय, पृ० २०४-७. ४. आवश्यक नियुक्ति, १२८३. ५. बृहत्कल्प भाष्य, भाग चतुर्थ, ४१३७,
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