Book Title: Jain Yug 1940
Author(s): Mohanlal Dipchand Chokshi
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 161
________________ તા. ૧-૮-૧૯૪૦. जैन युग. श्रीमान् पूर्णचन्द्रजी नाहर (संस्मरण) आचार्य श्रीराधारमण शर्मा, शास्त्री, काव्यतीर्थ. (लेखांक ३) उसके बाद मैं प्रायः दो सप्ताह और वहां रहकर लौट लिए ! दूसरे दिन जब मैं श्रीनाहरजी से मिलने गया, और आया । श्रीमान् नाहरजी-जैसे विद्वान, उदार और सहृदय कुशल-प्रश्न के बाद बतलाया-मैं आज रात में ही चला सजन का साथ छूटने का मुझे मार्मिक दुःख था; इच्छा थी, जाउंगा, तो वे बडे नाराज हुए। कहने लगे तो फिर आप कुछ दिन और साथ रहता, पर घर के कई आवश्यक कार्यों आये हो क्यों ? इससे कहीं अच्छा था, आप मुझसे मिले ने मुझे इससे वश्चित रक्खा । श्रीमान् नाहरजी राय हरिप्रसा- विना ही कलकत्ते से चले जाते । मुझे उनके अनुरोध से एक दलाल साहब के कुर्कीहार गांव की खुदाई में निकली दिन और रह जाना पड़ा। उस एक दिन के आतिथ्य में बुद्धमूर्तियों के देखने के लिए मेरे साथ हो गया आनेवाले भी उनका सौजन्य और भक्तिपूर्ण स्नेह अद्वितीय चिरस्मरथे, पर मेरे पूज्य पिताजी ने सूचना दी-अब रायसाहब के जाय रहा। पास मूर्तियां नहीं रहीं, अतः उनका आना भी रुक गया। उस दिन पहली बार मैंने नाहरजी के साथ नाहर नाहरजी के पाण्डित्य से अधिक उनकी शालीनता म्यूजियम देखा । नाहर-म्यूजियम को देख मुझे जो अनिर्वऔर सौजन्य ने मुझे अपना क्रीतदास बना रखा था, और चनीय आनन्द मिला, वह तो मिला ही, खेद भी कम नहीं जहां उन क्षणाको मधुर संस्मृति मेरे प्राणों के अजिर में हुआ। कारण इस यात्रा के पूर्व में १३-१४ बार कलकत्ते प्रसन्नता, भाव प्रवणता और उत्साह की राशि बिखेरती गया था, पर हर बार इसकी उपेक्षा करता आया था। रहती थी, आज वह मार्मिक वेदना का उपहार दे रही है। नाहजो- म्यूजिम को श्रीमान् नाहरजी ने अपने स्वर्गीय एक दिन नाहरजी अपने साहित्यिक मित्र का पत्र मुझे भ्राता श्रीकुमार सहजी नाहर की स्मृति में इसके अपने भव्य दिखला रहे थे। मैंने देखा-हिन्दी के कृतविद्य और लब्ध- ' भवन में स्थापित किया है, और यह निस्सन्देह कहा जा प्रतिष्ट प्रायः समस्त विद्वानों के अतिरिक योरप के भी प्रायः सकता है कि यह म्युजियम साहित्य, कला, पुरातत्त्व और दो दर्जन विख्यात विद्वानों के धनिष्टतापूर्ण पत्र थे। हिन्दी । इतिहास के प्रेमियों के लिए एक तीर्थ ही है। इस म्युजिसाहित्यमहारश्री पं० महावी प्रसादजी द्विवेदी उनके प्रति बड़ा यम में अपने कठिन अध्यवसाय, प्रचुर धनव्यय और सुदृढ लगन के फलस्वरूप श्रीनाहरजी ने जैसी-जैसो बहुमूल्य, सम्मान रखते थे, और साहित्यमहारथी एवम् ब्राह्मण होने दुर्लभ और महत्त्वपूर्ण प्राचीन और अर्वाचीन वस्तुओं का पर भी नाहरजी को सदा श्रद्वेय' और 'प्रगाम' ही संकलन किया है, वैसा संकलन भारत के एकाध म्युजियम लिखा करते थे। में ही कदाचित् होगा। इस म्युजियम में प्राचीनकालीन नाना श्रीमान् नाहरजी ने गया लौटने के समय मुझसे प्रतिज्ञा प्रकार का सोना, चांदी. स्फटिक आदि बहुमूल्य पत्थरों को मूर्तियों, शिलालेखा, चित्रा, सिको, अस्त्र-शास्त्रा, आभूषणा, करा ली थी, मैं शंघ्र ही कलकत्ते आकर उनसे मिलूंगा, ओर बर्तनों, दीपों तथा कला और पुरातत्त्व-संबंधी अन्यान्य उनके सुप्रसिद्ध नाहर-म्यूजियम को देखूगा; किन्तु आये बहुत-सा सस्तुओं के अतिरिक्त, आपाष्य हस्तलिखित तोके अतिरि अभी दो मास भी नहीं बीते थे कि १५ जनवरी, १९३४ मा का भी एक सन्दर विशाल और बहमन्य मंट है. का प्रलयंकर मूकम्प हुआ। बिहार में मृत्यु के वीभत्स जिसमें जिनधर्म को प्रायः समस्त प्रकाशित और अप्रकाशित ताण्डव से चारो ओर हाहाकार और उथल-पुथल और प्रलय पुस्तकें समवेत हैं। संग्रहालय में कुछ अत्यन्त बहुमूल्य मच गया। भूकम्प के तीसरे दिन प्रातः ही मुझे नाहरजी का प्राचीन बौद्ध ग्रन्थ भी हैं। बौद्धधर्म की एक पुस्तक वर्मा से अजेण्ट तार मिला। उन्होंने मेरे परिवार का कुशल पूछा था! प्राप्त हुई है, जिसमें सोने के १५ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र पर नाहरजी की अहेतुक, पर असीम औदार्यपूर्ण प्रीति का यह ६ पंक्तियां हैं, और इसकी लिपि पाली है। प्रत्येक पत्र पर ज्वलन्त उदाहरण था, जिसकी याद आज हृदय को बुरी २१ इंच लम्बा और ६ इंच चौडा है। पुस्तक में कई सुन्दर तरह कचोट रही है। चित्र भी हैं । इसी तरह और भी कई बहुमूल्य पुस्तकें हैं। भूकम्प के प्रायः एक मास बाद मैं एक दिन अक- म्युजियम में साढे तीन सौ के लगभग प्राचीन चित्रों स्मात किमी कार्यवश कलकत्ते चला गया-महज दो दिन के का भी संग्रह है । जिनमें कुछ अभ्रक पर, कुछ शीशे पर,

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