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भारतीय वारमय और अनुमान : ३
तर्कविद्याका अध्ययन आत्मज्ञान के लिए न सही, वस्तु-व्यवस्थाके लिए आवश्यक था।
न्यायसूत्र' और उसको व्याख्याओंमे' तर्क और अनुमानमें यद्यपि भेद किया है-तर्कको अनुमान नहीं, अनुमानका अनुग्राहक कहा है । पर यह भेद बहुत उत्तरकालीन है । किसो समय हेतु, तर्क, न्याय और अन्वीक्षा ये सभी अनुमानार्थक माने जाते थे। उद्योतकरके उल्लेखसे यह स्पष्ट जान पड़ता है। न्यायकोशकारने तर्कशब्दके अनेक अर्थ प्रस्तुत किये हैं। उनमें आन्वीक्षिको विद्या और अनुमान अर्थ भी दिया है ।
बाल्मीकि रामायणमें' आन्वीक्षिकी शब्दका प्रयोग है जो हेतुविद्या या तर्कशास्त्रके अर्थ में हुआ है । यहाँ उन लोगोंको 'अनर्थ कुशल', 'बाल', 'पण्डितमानी' और 'दुर्बुध' कहा है जो प्रमुख धर्मशास्त्रोंके होते हुए भी व्यर्थ आन्वीक्षिकी विद्याका सहारा लेकर कथन करते या उसकी पुष्टि करते हैं । ___ महाभारतमें आन्वीक्षिकीके अतिरिक्त हेतु, हेतुक, तर्कविद्या जैसे शब्दोंका भी प्रयोग पाया जाता है। तर्क विद्याको तो आन्वीक्षिकोका पर्याय ही बतलाया है। एक स्थानपर" याज्ञवल्क्यन विश्वावसुके प्रश्नोंका उत्तर आन्वीक्षिकीके माध्यमसे दिया और उसे परा (उच्च विद्या कहा है। दूसरे स्थलपर याज्ञवल्क्य राजर्षि जनकको आन्वीक्षिकीका उपदेश देते हुए उसे चतुर्थी विद्या तथा मोक्ष के लिए त्रयो, वार्ता और दण्डनीति तीनों विद्याओंसे अधिक उपयोगी बतलाते हैं । इसके अतिरिक्त एक अन्य जगह शास्त्रश्रवणके अनधिकारियों के लिए हेतुदुष्ट' शब्द आया है, जो असत्य हेतु प्रयोग करनेवालोंके ग्रहणका बोधक प्रतीत होता है। ध्यातव्य है कि जो व्यर्थ तर्क बिद्या ( आन्वीक्षिकी) पर अनुरक्त हैं उन्हें महाभारतकारने
१. अक्षपाठ गौतम, न्यायमू० १११।३,१११।४० । २. वात्स्यायन न्यायभाष्य ११११३, ११।४०; उद्योतकर, न्याथवा. १४३, ११।४० । ३. अपरे त्वनुमानं तक इत्याहुः । हेतुस्तका न्यायाऽन्वाक्षा इत्यनुमानमाख्यायत इति ।
-उद्योतकर, न्यायवा, १४०; चौखम्बा विद्याभवन, सन् १९१६ । ४. भीमाचार्य ( सम्पादक ), न्यायक श. 'तक' शब्द, पृ. ३२१, प्राच्यविद्यासंशोधन
मन्दिर, बम्बई, सन् १६२८ | ५. वाल्मीकि, रामायण अयो० का. १००।३८,३९, गीताप्रेस गोरखपुर, वि. सं. २०१७ । ६. व्यास, महाभारत शान्तिपर्व २१०।२२; १८०।४७; गीताप्रेस गोरखपुर, वि. सं.
२०१७। ७. वही, शा०प०३१८।३४ । ८. वहीं, शा०प० ३१८३५ । ६. वही, अनुशा० ५० १३४।१७ . १०. वही, शा० ५० १८०।४७ ।