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१० : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार होता है । अतः अनुमानका निबद्धरूपमें ऐतिहासिक विकासक्रम गौतमसे आरम्भकर रुद्रनारायण पर्यन्त अंकित किया जा सकता है । रुद्रनारायणने अपनी तत्त्वरौद्रीमें गंगेश उपाध्याय द्वारा स्थापित अनुमानको नव्यन्यायपरम्परामें प्रयुक्त नवीन पदावलीका विशेष विश्लेषण किया है । यद्यपि मूलभूत सिद्धान्त तत्त्वचिन्तामणिके ही हैं, पर भाषाका रूप अधुनातन है और अवच्छेदकावच्छिन्न, प्रतियोगिताकाभाव आदिको नवोन लक्षणावलीमें स्पष्ट किया है।
गौतमका न्यायसूत्र अनुमानका स्वरूप, उसको परीक्षा, हेत्वाभास, अवयव एवं उसके भेदोंको ज्ञात करनेके लिए महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यद्यपि यह सत्य है कि अनुमानके निर्धारक तथ्य पक्षधर्मता, व्याप्ति और परामर्शका उल्लेख इसमें नहीं पाया जाता, तो भी अनुमानकी प्रस्तुत की गयो समीक्षासे अनुमानका पूरा रूप खड़ा हो जाता है । गौतमके समयमें अनुमान-सम्बन्धी जिन विशेष बातोंमें विवाद था उनका उन्होंने स्वरूप विवेचन अवश्य किया है। यथा-प्रतिज्ञाके स्वरूपनिर्धारण के सम्बन्धमें विवाद था-कोई साध्यको प्रतिज्ञा मानता था, तो कोई केवल धर्मीको प्रतिज्ञा कहता था। उन्होंने साध्यके निर्देशको प्रतिज्ञा कहकर उस विवादका निरसन किया। इसी प्रकार अवयवों, हेतुओं, हेत्वाभासों एवं अनुमान-प्रकारोंके सम्बन्धमें वर्तमान विप्रतिपत्तियोंका भी उन्होंने समाधान प्रस्तुत किया और एक सुदृढ़ परम्परा स्थापित की।
न्यायसूत्रके भाष्यकार वात्स्यायनने सूत्रों में निर्दिष्ट अनुमान सम्बन्धी सभी उपादानोंकी परिभाषाएँ अंकित की और अनुमानको पुष्ट और सम्बद्ध रूप प्रदान किया है। यथार्थ में वात्स्यायनने गौतमको अमर बना दिया है। व्याकरणके क्षेत्रमें जो स्थान भाष्यकार पतंजलिका है, न्यायके क्षेत्रमें वही स्थान वात्स्यायनका है। वात्स्यायनने सर्वप्रथम 'तत्पूर्वकम्' पदका विस्तार कर लिंगलिंगिनोः सम्बन्धदशन पूर्वकमनमानम्' परिभाषा अंकित की। और लिंग-लिंगीके सम्बन्धदर्शनको अनुमानका कारण बतलाया। ___ गौतमने अनुमानके त्रिविध भेदोंका मात्र उल्लेख किया था। पर वात्स्यायनने उनकी सोदाहरण परिभाषाएँ भी निबद्ध की है। वे एक प्रकारका परिकार देकर ही संतुष्ट नहीं हुए, अपितु प्रकारान्तरसे दूसरे परिष्कार भी ग्रथित किये हैं।" इन व्याख्यामूलक परिष्कारोंके अध्ययन बिना गौतमके अनुमानरूपोंको अवगत करना असम्भव है। अतः अनुमानके स्वरूप और उसकी भेदव्यवस्थाके स्पष्टीकरणका श्रेय बहुत कुछ वात्स्यायनको है ।
१. साध्यनिर्देशः प्रतिज्ञा । -न्यायसू० ११११३३ । २. न्यायभा० ११११५, पृष्ठ २१ । ३,४,५. वही, ११११५, पृष्ठ २१, २२ ।