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अनुमानका विकास-क्रम : ११
अपने समय में प्रचलित दशावयवकी समीक्षा करके न्यायसूत्रकार द्वारा स्थापित पंचावयव-मान्यताका युक्तिपुरस्सर समर्थन करना भी उनका उल्लेखनीय वैशिष्टय है ।' न्यायमाष्यमें साधर्म्य और वैधर्म्य प्रयुक्त हेतुरूपोंकी व्याख्या भी कम महत्त्वकी नहीं है। द्विविध उदाहरणका विवेचन भी बहुत सुन्दर और विशद है । ध्यातव्य है कि वात्स्यायनने 'पूर्वीस्मन् द्वष्टान्ते यौ तौ धर्मों साध्यसाधनभूती पश्यति, साध्येऽपि तयोः माध्यमाधनभावमनुमिनोति।' कहकर साधर्म्यदृष्टान्तको अन्वयदृष्टान्त कहने और अन्वय एवं अन्वयव्याप्ति दिखानेका संकेत किया जान पड़ता है । इसी प्रकार 'उत्तरस्मिन् दृष्टान्ते तयोधर्मयोरेकस्याभावादितरम्याभावं पश्यति, तयोरेकस्याभावादितरस्याभावं साध्येऽनुमिनोतीति ।'४ शब्दों द्वारा उन्होंने वैधय॑दृष्टान्तको व्यतिरेकदृष्टान्त प्रतिपादन करने तथा व्यतिरेक एवं व्यतिरेकव्याप्ति प्रदर्शित करनेकी ओर भी इंगित किया है। यदि यह ठीक हो तो यह वात्स्ययान की एक नयी उपलब्धि है। सूत्रकारने हेतुका सामान्य लक्षण ही वतलाया है। पर वह इतना अपर्याप्त है कि उससे हेतुके सम्बन्धमें स्पष्टतः जानकारी नहीं हो पाती। भाष्यकारने हेतु-लक्षणको उदाहरण द्वारा स्पष्ट करनेका सफल प्रयास किया है। उनका अभिमत है कि 'साध्यपाधनं हेतुः' तभी स्पष्ट हो सकता है जब साध्य ( पक्ष ) तथा उदाहरण में धर्म ( पक्षधर्म हेतु ) का प्रतिसन्धान कर उसमें साधनता बतलायी जाए। हेतु समान और असमान दोनों ही प्रकारके उदाहरण बतलाने पर साध्यका साधक होता है । यथा-न्यायमुत्रकारके प्रतिज्ञालक्षण'को स्पष्ट करने के लिए उदाहरणस्वरूप कहे गये 'शब्दोऽनित्यः' को ‘उत्पत्तिधमकत्वात् हेतुका प्रयोग करके सिद्ध किया गया है। तात्पर्य यह कि भाष्यकारने हेतुस्वरूपबोधक मूत्रको उदाहरणद्वारा विशद व्याख्या तो की ही है, पर 'साध्य प्रतिसन्धाय धममुदाहणे च प्रतिमन्धाय तस्य माधन तावत्तनं हेतुः कथन द्वारा साध्यके साथ नियत सम्बन्धीको हेतु कहा है। अतः जिस प्रकार उदाहरणके क्षेत्रमें उनकी देन है उसी प्रकार हेतुके क्षेत्रमें भी।
१. न्यायभा० ११३२, पृष्ठ ४७ । २. वही, ॥१॥३४, ३५, पृष्ठ ४८ । ३. वही, ११३७, पृष्ठ ५० । ४. वही, ११३७, पृष्ठ ५० । ५. न्यायसू० ११॥३४,३५ । ६. 'उत्पत्तिधर्मकत्वात्' इति। उत्पत्तिधर्मकमनित्यं दृष्टमिति ।
-न्यायभा० १३१२३४, ३५, पृष्ठ ४८, ४९ । ७. साध्यनिर्देशः प्रतिशा-न्यायसू० १५१०३३ । ८. न्यायभा० ११११३३, ३५, पृष्ठ ४८, ४६ । ९. वही, ११११३४, ३५, पृष्ठ ४८, ४६ ।