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संक्षिप्त अनुमान-विवेचन : ४९ किया है। इससे गौतमकी दृष्टिमें उनकी अनुमानमें प्रमुख प्रतिबन्धकता प्रकट होती है । उन्होंने उन साधनगत दोषोंको, जिन्हें हेत्वाभासके नामसे उल्लिखित किया गया है, पांच बतलाया है। वे हैं--१. सव्यभिचार, २. विरुद्ध, ३. प्रकरणसम, ४. साध्यसमय और ५. कालातीत । हेत्वाभासोंको पांच संख्या सम्भवतः हेतुके पांच रूपोंके अभावपर आधारित जान पड़ती है। यद्यपि हेतुके पांच रूपोंका निर्देश न्यायसूत्रमें उपलब्ध नहीं है । पर उसके व्याख्याकार उद्योतकर प्रभृतिने उनका उल्लेख किया है। उद्योतकरने हेतुका प्रयोजक समस्तरूपसम्पत्तिको और हेत्वाभासका प्रयोजक असमस्तरूपसम्पत्तिको बतला कर उन रूपोंका संकेत किया है । वाचस्पतिने उनकी स्पष्ट परिगणना भी कर दी है। वे पांच रूप हैंपक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व, विपक्षासत्त्व, अबाधितविषयत्व और असत्प्रनिपक्षत्त्व । इनके अभावसे हेत्वाभास पाँच ही सम्भव है । जयन्तभट्टने तो स्पष्ट लिखा है कि एक-एक रूपके अभावमें पाँच हेत्त्वाभास होते हैं । न्यायसूत्रकारने एक-एक पृथक् सूत्र द्वारा उनका निरूपण किया है । वात्स्यायनन" हेत्वाभासका स्वरूप देते हुए लिखा है कि जो हेतुलक्षण ( पंचरूप ) रहित हैं परन्तु कतिपय रूपांके रहने के कारण हेतु-सादृश्यसे हेतुको तरह आभासित होते हैं उन्हें अहेतु अर्थात् हेत्वाभास कहा गया है । सवदेवने भी हेत्वाभासका यही लक्षण दिया है।
कणादने अप्रसिद्ध, विरुद्ध और सन्दिग्ध ये तीन हेत्वाभास प्रतिपादित किये हैं। उनके भाष्यकार प्रशस्तपादने उनका समर्थन किया है। विशेष यह कि उन्होंने काश्यपको दो कारिकाएँ उद्धृत करके पहली द्वारा हेतुको त्रिरूप और दूसरी द्वारा उन तीन रूपोंके अभावसे निष्पन्न होने वाले उक्त विरुद्ध, असिद्ध और
१. सव्यभिचारविरुद्धप्रकरणसमसाध्यासमकालातोता हेत्वाभासाः ।
-न्यायसू० १।२।४ । २. समस्तलक्षणापपत्तिरसमस्तलक्षणोपपत्तिश्च ।
-न्यायवा० १।२।४, पृष्ठ १६३ । ३. न्यायवा० ता० टी० १।२।४, पृष्ठ ३३० । ४. हेतोः पंचलक्षणानि पक्षधर्मवादीनि उक्तानि। तेषामकैकापाये पंच हेत्वाभासा भवन्ति
असिद्ध-विरुद्ध-अनैकान्तिक-कालात्ययापदिष्ट-प्रकरणसमाः ।
-न्यायकलिका पृ० १४ । न्यायमं० पृ० १०१ । ५. हेतुलक्षणाभावादहेतवा हेतुसामान्यातुवदाभासमानाः ।
-न्यायभा० ११२।४ को उत्थानिका, पृ० ६३ । ६. प्रमाणमं० पृष्ठ ९ । ७. वै० सू० ३।१।१५। ८. प्रश० भा० पृ० १००-१०१ । ९. प्रश. भा०पू०१००।