Book Title: Jain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 241
________________ २१४ : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार १. कारणविरुद्ध कार्य- इसके शीतजनित रोमहर्षादिविशेष नहीं है, क्योंकि धम है । प्रतिषेध्य रोमहर्शादिविशेषका कारण शीत है, उसका विरोधी अनल है, उसका कार्य धूम है। ___२. व्यापकविरुद्ध कार्य-यहां शोतस्पर्शसामान्यसे व्याप्त शीतस्पर्श विशेष नहीं है, क्योंकि धूम है । निषेध्य शीतस्पर्शविशेषका व्यापक शीतस्पर्शसामान्य है, उसका विरोधी अनल है, उसका कार्य धूम है। ३. कारणव्यापकविरुद्ध कार्य-यहां हिमत्वव्याप्त हिमविशेषजनितरोमहर्षादिविशेष नहीं है, क्योंकि धूम है । रोमहर्षादि शेषका कारण हिमविशेष हैं, उसका व्यापक हिमत्व है, उसका विरोधी अग्नि है, उसका कार्य धूम है । ४. व्यापककारणविरुद्ध कार्य-यहां शीतस्पर्शविशेषव्यापक शीतस्पर्शसामान्यके कारण हिमसे होनेवाला शीतस्पर्श विशेष नहीं है, क्योंकि धूम है। प्रतिषेध्य शीतस्पर्शविशेषका व्यापक शीतस्पर्शसामान्य है, उसका कारण हिम है, उसका विरोधी अग्नि है, उसका कार्य धूम है । ५. कारणविरुद्ध कारण-इसके मिथ्याचरण नहीं है, क्योंकि तत्त्वार्थोपदेशका ग्रहण है । मिथ्याचरणका कारण मिथ्याज्ञान है, उसका विरोधी तत्त्वज्ञान है, उसका कारण तत्वार्थोपदेशग्रहण है । ६. व्यापकविरुद्ध कारण-इसके आत्मामें मिथ्याज्ञान नहीं है, क्योंकि तत्त्वार्थोपदेशका ग्रहण है। मिथ्याज्ञानविशेषका व्यापक मिथ्याज्ञानसामान्य है, उसका विरोधी सत्यज्ञान है, उसका कारण तत्त्वार्थोपदेशग्रहण है। ७. कारणव्यापकविरुद्धकारण-इसके मिथ्याचरण नहीं है, क्योंकि तत्त्वार्थोपदेशका ग्रहण है । यहां मिथ्याचरणका कारण मिथ्याज्ञानविशेष है, उसका व्यापक मिथ्याज्ञानसामान्य है, उसका विरोधी तत्त्वज्ञान है, उसका कारण तत्त्वार्थोपदेशग्रहण है। ८. व्यापककारणविरुद्धकारण-इसके मिथ्याचरणविशेष नहीं है, क्योंकि तत्त्वार्थोप्रदेशका ग्रहण है। मिथ्याचरणविशेषका व्यापक मिथ्याचरणसामान्य है, उसका कारण मिथ्याज्ञान है, उसका विरोधी तत्त्वज्ञान है, उसका कारण तत्त्वार्थोपदेशग्रहण है। ९. कारणविरुद्धव्याप्य'–सर्वथैकान्तवादीके प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य नहीं है, क्योंकि विपरीतमिथ्यादर्शनविशेष है। प्रशमादिका कारण सम्यग्दर्शन है, उसका विरोधी मिथ्यादर्शनसामान्य है, उससे व्याप्य विपरीतमिथ्यादर्शनविशेष है। १. प्र०प० पृष्ठ ७४ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326