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५० : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान- विचार
सन्दिग्ध तीन हेत्वाभासोंको बताया है । प्रशस्तपादका' एक वैशिष्ट्य और उल्लेख्य है । उन्होंने निदर्शनके निरूपण- सन्दर्भ में बारह निदर्शनाभासों का भी प्रतिपादन किया है, जबकि न्यायसूत्र और न्यायभाष्य में उनका कोई निर्देश प्राप्त नहीं है । पाँच प्रतिज्ञाभासों ( पक्षाभासों ) का भी कथन प्रशस्तपादने २ किया है, जो बिलकुल नया है । सम्भव है न्यायसूत्रमें हेत्त्वाभासों के अन्तर्गत जिस कालातीत ( बाधित विषय --- कालात्ययापदिष्ट ) का निर्देश है उसके द्वारा इन प्रतिज्ञाभासोंका संग्रह न्यानसूत्रकारको अभीष्ट हो । सर्वदेवने छह हेत्वाभास बताये है ।
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उपायहृदय में आठ हेत्वाभासोंका निरूपण है । इनमें चार ( कालातीत, प्रकरणसम, सव्यभिचार और विरुद्ध ) हेत्वाभास न्यायसूत्र जैसे ही हैं तथा शेष चार ( वाक्छल, सामान्यछल, संशयसम और वयंसम ) नये हैं । इनके अतिरिक्त इसमें अन्य दोषोंका प्रतिपादन नहीं है । पर न्यायप्रवेश में" पक्षाभास, हेत्वाभास और दृष्टान्ताभास इन तीन प्रकारके अनुमान - दोषों का कथन है । पक्षाभास के नौर, हेत्वाभासके' तीन और दृष्टान्ताभास के दश भेदोंका सोदाहरण निरूपण हैं । विशेष यह कि अनैकान्तिक हेत्वाभास के छह भेदोंमें एक विरुद्धाव्यभिचारीका भी कथन उपलब्ध होता है, जो तार्किकों द्वारा अधिक चर्चित एवं समालोचित हुआ है । न्यायप्रवेशकारने दश दृष्टान्ताभासों के अन्तर्गत उभयासिद्ध दृष्टान्ताभासको द्विविध वर्णित किया है और जिससे प्रशस्तपाद जैसी ही उनके दृष्टान्ताभासोंकी संख्या द्वादश हो जाती है । पर प्रशस्तपादोक्त द्विविध आश्रयासिद्ध उन्हें अभीष्ट नहीं है ।
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कुमारिल" और उनके व्याख्याकार पार्थसारथिने मीमांसक दृष्टिसे छह प्रतिज्ञाभासों, तीन हेत्वाभासों और दृष्टान्तदोषोंका प्रतिपादन किया है । प्रतिज्ञाभासों में प्रत्यक्षविरोध, अनुमानविरोध और शब्दविरोध ये तीन प्रायः प्रशस्तपाद तथा न्ययप्रवेशकारकी तरह ही हैं । हाँ, शब्दविरोधके प्रतिज्ञातविरोध, लोक
१. प्र० भा०, पृ० १२२, १२३ ।
२. वही, पृ० ११५ ।
३. प्रमाणमं० पृष्ठ ९ ।
४. उ० हृ० पृ० १४ ।
५. एषां पक्षहेतुदृष्टान्ताभासानां वचनानि साधनाभासम् ।
-श्या० प्र० पृ० २-७ ।
६, ७, ८. वही, २, ३-७ ।
९. वही, पृ० ४ ।
१०. न्यायप्र० पृ० ७ ।
११. मी० श्लोक अनु० श्लोक० ५८-६६, १०८ ।
१२. न्यायरत्ना० मी० श्लोक० अनु० ५८-६६, १०८ ।
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