Book Title: Jain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 222
________________ हेतु-विमर्श : १५ लब्ध है। आचार्य अनन्तवीर्यके' उल्लेखानुसार पात्रस्वामीने 'अन्यथानुपपन्नत्व' को हेतुलक्षण सिद्ध करने और रूप्यको निरस्त करनेके लिए 'विलक्षणकदर्थन' नामक महत्त्वपूर्ण तर्कग्रन्थ रचा था, जो आज अनुपलब्ध है और जिसके अस्तित्व. का मात्र उल्लेख मिलता है। पात्रस्वामोके उक्त हेतुलक्षणको परवर्ती सिद्धसेन', अकलङ्क कुमारनन्दि , वीरसेन", विद्यानन्द आदि जैन ताकिकोंने अनुसत एवं विस्तृत किया है। पात्रस्त्रामीका मन्तव्य है कि जिसमें अन्यथानुपपन्नत्व ( अन्यथा-साध्यके अभावमें अनुपपनत्व नहीं होना, अविनाभाव ) है वह हेतु है, उसमें रूप्य रहे, चाहे न रहे, तथा जिसमें अन्यथानुपपन्नत्व नहीं है वह हेतु नहीं है उसमें रूप्य रहनेपर भी वह बेकार है। इन दोनों ( अन्यथानुपनत्वके सद्भाव और असद्भाव ) स्थलोंके यहाँ दो उदाहरण प्रस्तुत है (१) एक मुहर्तके बाद शकट नक्षत्रका उदय होगा, क्योंकि कृत्तिकाका उदय है। इस सद्-अनुमानमें कृत्तिकोदय हेतु रोहिणी नामक पक्षमें नहीं रहता, अतः पक्षधर्मत्व नहीं है। पर कृत्तिकोदयका शकटोदय साध्यके साथ अन्यथानुपपन्नत्व होनेके कारण वह गमक है और सद्धेतु है । (२) गर्मस्थ मैत्रीपुत्र श्याम होगा, क्योंकि वह मैत्रीका पुत्र है, अन्य पुत्रोंकी तरह । इस असद् अनुमानमें पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्षासत्त्व तीनों हैं। परन्तु तत्पुत्रत्वका श्यामत्वके साथ अविनाभाव नहीं है और इसलिए तत्पुत्रत्व हेतु श्यामत्वका गमक नहीं है और न सहेतु है । फलतः सर्वत्र हेतुओंमें अन्यथानुपपन्नत्वके सद्भावसे गमकता और असद्भावसे अगमकता है । पात्रस्वामीके इस मतको यहां तत्त्वसंग्रहसे उद्धृत किया जाता है अन्यथेत्यादिना पात्रस्वामिमतमाशंकतेअन्यथानुपपन्नत्वे ननु दृष्टा सुहेतुत।। नासति त्र्यंशकस्यापि तस्मारक्लीवास्त्रिलक्षणाः ॥ अन्यथानुपपन्नवं यस्यासौ हेतुरिष्यते । एकलक्षणकः सोऽथश्चतुलक्षणको न वा ॥ १. अनन्तवीर्य, सिद्धिवि० ६२, पृष्ठ ३७१-३७२ । २. न्यायाव० का० २१ । ३. न्यायवि० का २।१५४, १५५, पृ० १७७ । ४. प्रमाणप० पृ० ७२ में विद्यानन्दद्वारा उद्धृत कुमारनन्दिका 'अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं' -वाक्य। ५. षट्ख० टी० धवला ५५५, पृ० २८० तथा ५.५४३, पृ० २४५ । ६. प्रमाणप० पृ. ७२ । त० श्लोक मा० १११३३१९३, पृ० २०५।

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