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२२ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार उनकी शिष्यपरम्परामें होने वाले देवेन्द्रबुद्धि, शान्तभद्र, विनीतदेव, अर्चट, धर्मोतर, प्रज्ञाकर आदिने पुष्ट किया और अपनी व्याख्याओं-टोकाओं आदि द्वारा प्रवृद्ध किया है। इस प्रकार बौद्धतर्कशास्त्रके विकासने भी भारतीय अनुमानको अनेक रूपोंमें समृद्ध किया है। (घ ) मोमांसक-परम्परामें अनुमानका विकास
बौद्धों और नयायिकोंके न्यायशास्त्र विकासका अवश्यम्भावी परिणाम यह हुआ कि मीमांसक जैसे दर्शनोंमें, जहाँ प्रमाणको चर्चा गौण थो, कुमारिलने श्लोकवार्तिक, प्रभाकरने बृहतो, शालिकानाथने बृहतीपर पंचिका और पार्थसारथिने शास्त्रदीपिकान्तर्गत तर्कपाद जैसे ग्रन्थ लिखकर तकशास्त्रको मीमांसक दृष्टि से प्रतिष्ठित किया। श्लोकवार्तिकमें तो कुमारित्ने' एक स्वतन्त्र अनुमानपरिच्छेदकी रचना करके अनुमानका विशिष्ट चिन्तन किया है और व्याप्य ही क्यों गमक होता है इसका सूक्ष्म विचार करते हुए उन्होंने व्याप्य एवं व्याप्तिके सम और विषम दो रूप बतलाकर अनुमानको समृद्धि को है। (ङ) वेदान्त और सांख्यपरम्परामें अनुमान-विकास
वेदान्तमें भी प्रमाणशास्त्रको दृष्टिसे वेदान्तपरिभाषा जैसे ग्रन्थ लिखे गये हैं। सांख्य विद्वान् भी पीछे नहीं रहे। ईश्वरकृष्णने अनुमानका प्रामाण्य स्वीकार करते हुए उसे त्रिविध प्रतिपादित किया है। माठर, युक्तिदीपिकाकार, विज्ञानभिक्षु और बाचस्पति आदिने अपनी व्याख्याओं द्वारा उसे सम्पुष्ट और विस्तृत किया है।
१. मी० श्लो० अनुमा० परि० श्लोक ४-७ तथा ८-१७१ ।