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२४ : जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार १. हेतु चार प्रकारका है
(१) प्रत्यक्ष (२) अनुमान ( ३ ) उपमान
( ४ ) आगम गौतमके न्यायसूत्र में भी ये चार भेद अभिहित हैं। पर वहां इन्हें प्रमाणके भेद कहा है।
हेतुके अर्थमें हेतु शब्द निम्न प्रकार व्यवहृत हुआ है२. हेतुके चार भेद हैं(१) विधि विधि-( साध्य और साधन दोनों सद्भावरूप हों) (२) विधि-निषेध-( साध्य विधिरूप और साधन निषेधरूप ) ( ३ ) निषेध-विधि-( साध्य निषेधरूप और हेतु विधिरूप ) ( ४ ) निषेध-निषेध--( साध्य और साधन दोनों निषेध रूप हों ) इन्हें हम क्रमशः निम्न नामोंसे व्यवहृत कर सकते हैं(१) विधिसाधक विधिरूप
अविरुद्धोपलब्धि (२) विधिसाधक निषेधरूप
विरुद्धानुपलब्धि (३ ) निषेधसाधक विधिरूप
विरुद्धोपलब्धि ( ४ ) प्रतिषेधसाधक प्रतिषेधरूप अविरुद्धानुलब्धि इनके उदाहरण निम्न प्रकार दिये जा सकते हैं(१) अग्नि है, क्योंकि धूम है। (२) इस प्राणीमें व्याधिविशेष है, क्योंकि निरामय चेष्टा नहीं है । ( ३ ) यहाँ शीतस्पर्श नहीं है, क्योंकि उष्णता है । ( ४ ) यहाँ धूम नहीं है, क्योंकि अग्नि का अभाव है ।
१. धर्मभूषण, न्यायदी० पृ० ९५-९९ । २. माणिक्यनन्दि, परीक्षामु० ३।५७-५८ । ३. तुलना कीजिए
१. पर्वतोऽयमग्निमान् धूमत्वान्यथानुपपत्तेः-धर्मभूषण, न्यायदी० पृ० १५ । २. यथाऽस्मिन् प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धेः। ३. नास्त्यत्र शीतस्पर्श औष्ण्यात् । ४. नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः।
-माणिक्यनन्दि, परीक्षामु० ३।८७, ७६, ८२ ।