________________
तृतीय परिच्छेद संक्षिप्त अनुमान-विवेचन
अनुमानका स्वरूप
व्याकरणके अनुसार 'अनुमान' शब्दको निष्पत्ति अनु + /मा + ल्युट् से होती है । अनुका अर्थ है पश्चात् और मानका अर्थ है ज्ञान । अतः अनुमानका शाब्दिक अर्थ है पश्चाद्वर्ती ज्ञान । अर्थात् एक ज्ञानके बाद होने वाला उत्तरवर्ती ज्ञान अनुमान है । यहाँ 'एक ज्ञान' से क्या तात्पर्य है ? मनोपियोंका अभिमत है कि प्रत्यक्ष ज्ञान ही एक ज्ञान है जिसके अनन्तर अनुमानको उत्पत्ति या प्रवृत्ति पायी जाती है। गौतमने इसी कारण अनुमानको 'तत्पूर्वकम्'-प्रत्यक्षपूर्वकम्' कहा है । वात्स्यायनका भी अभिमत है कि प्रत्यक्षके बिना कोई अनुमान सम्भव नहीं। अतः अनुमानके स्वरूप-लाभमें प्रत्यक्षका सहकार पूर्वकारणके रूपमें अपेक्षित होता है। अतएव तर्कशास्त्री ज्ञात-प्रत्यक्षप्रतिपन्न अर्थसे अज्ञातपरोक्ष वस्तुको जानकारी अनुमान द्वारा करते हैं।
कभी-कभी अनुमानका आधार प्रत्यक्ष न रहने पर आगम भी होता है। उदाहरणार्थ शास्त्रों द्वारा आत्माकी सत्ताका ज्ञान होने पर हम यह अनुमान करते हैं कि 'आत्मा शाश्वत है, क्योंकि वह सत् है'। इसी कारण वात्स्यायनने 'प्रत्यक्षागमाश्रितमनमानम्' अनुमानको प्रत्यक्ष या आगमपर आश्रित कहा है । अनुमानका पर्यायशब्द अन्वोक्षा" भी है, जिसका शाब्दिक अर्थ एक वस्तुज्ञानको प्राप्तिके पश्चात् दूसरी वस्तुका ज्ञान प्राप्त करना है। यथा-धूमका ज्ञान प्राप्त करनेके बाद अग्निका ज्ञान करना।
१. अथ तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमानम् ।
-न्यायसू० १।११५। २. अथवा पूर्ववदिति--यत्र यथापूर्व प्रत्यक्षभूनयोरन्यतरदर्शनेनान्यतरस्याप्रत्यक्षस्यानुमा
नम् । यथा घूमेनाग्निरिति ।
-न्यायभा० ११११५, पृष्ठ २२ । ३. यथा घूमेन प्रत्यक्षेणाप्रत्यक्षस्य वर्ग्रहणमनुमानम् ।
-वही, २०११४७, पृष्ठ १२० । ४. वही, १११।१। पृष्ठ ७ । ५. वही, १११११, पृष्ठ ७ ।