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अनुमानका विकासक्रम : १९ इस सम्बन्धमात्र के सूचक वचनसे चन्द्रोदयादि हेतुओंका, जो कार्यादिरूप नहीं हैं, संग्रह कर लेते हैं । यह प्रतिपादन भी प्रशस्तपादकी अनुमानके क्षेत्र में एक देन है ।
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अनुमानके दृष्ट और सामान्यतोदृष्टके भेदसे दो भेदों तथा स्वनिश्चितार्थानुमान और परार्थानुमान के भेदसे भी दो भेदों का वर्णन, शब्द, चेष्टा, उपमान, अर्थापत्ति, सम्भव, अभाव और ऐतिह्यका अनुमान में अन्तर्भाव - प्रतिपादन, 3 परार्थानुमानवाक्य के प्रतिज्ञा, अपदेश, निदर्शन, अनुसन्धान, प्रत्याम्नाय इन पाँच अवयवोंकी परिकल्पना, हेत्वाभासोंका अपने ढंगका चिन्तन, " अनध्यवसितनाम के हेत्वाभास की कल्पना और फिर उसे असिद्ध के भेदों में ही अन्तर्भूत करना तथा निदर्शनके विवेचनप्रसंग में निदर्शनाभासोंका कथन, ७ जो न्यायदर्शन में उपलब्ध नहीं होता, केवल जैन और बौद्ध तर्कग्रन्थोंमें वह मिलता है, आदि अनुमान-सम्बन्धी सामग्री प्रशस्तपादभाष्य में पर्याप्त विद्यमान है ।
व्योमशिव, श्रीधर आदि वैशेषिक तार्किकोंने भी अनुमानपर विचार किया है और उसे समृद्ध बनाया है ।
( ग ) बौद्ध परम्परा में अनुमानका विकास
बौद्ध तार्किक तो भारतीय तर्कशास्त्रको इतना प्रभाबित किया है कि अनुमानपर उनके द्वारा संख्याबद्ध ग्रन्थ लिखे गये हैं । उपलब्ध बौद्ध तर्कग्रन्थों में सबसे प्राचीन तर्कशास्त्र और उपायहृदय नामक दो ग्रन्थ माने जाते हैं । तर्कशास्त्र में तीन प्रकरण हैं । प्रथममें परस्पर दोषापादन, खण्डनप्रक्रिया, प्रत्यक्षविरुद्ध, अनुमानविरुद्ध, लोकविरुद्ध तीन विरुद्धों का कथन हेतुफलन्याय, सापेक्षन्याय, साधनन्याय, तथतान्याय चार न्यायोंका प्रतिपादन आदि है । द्वितीयमें खण्डनभेदों और तृतीय में उन्हीं बाइस निग्रहस्थानोंका अभिधान है, जिनका गौतम के न्यायसूत्रमें है । किन्तु गौतमको तरह हेत्वाभास पाँच वर्णित नहीं हैं,
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१. प्रश० भा० पृष्ठ १०४ । २. वही, पृष्ठ १०६, ११३ । ३. वही, पृष्ठ १०६-११२ । ४. वही, पृष्ठ ११४-१२७ ।
५. वही, पृष्ठ ११६-१२१ ।
६. वही, पृष्ठ ११६ तथा १२० ।
७. वही, पृष्ठ १२२ ।
८. ओरियंटल इंस्टीट्यूट बडौदा द्वारा प्रकाशित Pre-Dinnaga Buddhist texts on Logic From Chinese Sources के अन्तर्गत 1
९. वही ।