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२ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार में' अनुमानके अङ्ग हेतु और दृष्टान्त तथा मैत्रायणी-उपनिषदमें २ अनुमानसूचक 'अनुमीयते' क्रियाशब्द मिलते हैं। इसी तरह सुबालोपनिषद्भ3 'न्याय' शब्दका निर्देश है। इन उल्लेखोंके अध्ययनसे हम यह तथ्य निकाल सकते हैं कि उपनिषद् कालमें अध्यात्म-विवेचनके लिये क्रमशः अनुमानका स्वरूप उपस्थित होने लगा था।
शाङ्कर-भाष्यमें 'वाकोवाक्यम्'का अर्थ 'तर्कशास्त्र' दिया है। डा. भगवानदासने भाष्यके इस अर्थको अपनाते हुए उसका तर्कशास्त्र, उत्तर-प्रत्युत्तरशास्त्र, युक्ति-प्रतियुक्तिशास्त्र व्याख्यान किया है । इन ( अर्थ और व्याख्यान )के आधारपर अनुभवगम्य अध्यात्मज्ञानको अभिव्यक्त करनेके लिए छान्दोग्योयनिषझै व्यवहृत 'वाकोवाक्यम्'को तर्कशास्त्रका बोधक मान लेने में कोई विप्रतिपत्ति नहीं है। ज्ञानोत्पत्तिकी प्रक्रियाका अध्ययन करनेसे अवगत होता है कि आदिम मानवको अपने प्रत्यक्ष (अनुभव) ज्ञानके अविसंवादित्वकी सिद्धि अथवा उसको सम्पष्टिके लिए किसी तर्क, हेतु या युक्तिकी आवश्यकता पड़ी होगी।
प्राचीन बौद्ध पाली-ग्रन्थ ब्रह्मजालसुत्तमें तर्की और तर्क शब्द प्रयुक्त हए हैं, जो कमश: तर्कशास्त्री तथा तक विद्याके अर्थ में आये हैं । यद्यपि यहाँ तर्कका अध्ययन आत्मज्ञानके लिए अनुपयोगी बताया गया है, किन्तु तर्क और तर्को शब्दोंका प्रयोग यहाँ क्रमशः कुतर्क (वितण्डावाद या व्यर्थ के विवाद ) और कुतर्की (वितण्डावादी) के अर्थ में हआ ज्ञात होता है । अथवा ब्रह्मजालसुत्तका उक्त कथन उस युगका प्रदर्शक है, जब तर्कका दुरुपयोग होने लगा था। और इसीसे सम्भवतः ब्रह्मजालसुत्तकारको आत्मज्ञानके लिए तर्कविद्याके अध्ययनका निषेध करना पड़ा। जो हो, इतना तो उससे स्पष्ट है कि उसमें तर्क और तर्को शब्द प्रयुक्त हैं और
१. 'हेतदृष्टान्तवजितम्'।
-ब्रह्मबिन्दू० श्ल क; निर्णयसागर प्रस बम्बई; १९३२ । २. ... बहिरात्मा गत्यन्तरात्मनानुमायते।
-मैत्रायणी० ५।१; निर्णयसागर प्रस बम्बई, १६३२ । ३. शिक्षा कल्पो...न्याया मामांसा... ।
-सुबालापनिष० खण्ड २; प्रकाशन स्यान व समय वहीं । ४. वाकोवाक्यं तकशास्त्रम्।
-आ० शङ्कर, छान्दोग्यो० भाष्य ७१।२, गीताप्रेस गोरखपुर । ५. डा. भगवानदास, दर्शनका प्रयोजन पृ. १ । ६. 'इध, भिक्खवे, एकच्चो समणो वा ब्राह्मणो वा तक्की होति वीमंसी । सो तक्कपरियाहतं वोमंसानुचरितं ... -राय डेविड ( सम्पादक ), ब्रह्मजालसु० ११३२ ।