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अध्याय : १:
प्रथम परिच्छेद
प्रास्ताविक भारतीय वाङ्मय और अनुमान भारतीय तर्कशास्त्रमें अनुमानका महत्त्वपूर्ण स्थान है। चार्वाक ( लौकायत ) दर्शनके अतिरिक्त शेष सभी भारतीय दर्शनोंने अनुमानको प्रमाणरूपमें स्वीकार किया है और उसे परोक्ष पदार्थोकी व्यवस्था एवं तत्त्वज्ञानका अन्यतम साधन माना है।
विचारणीय है कि भारतीय वाङ्मयके तर्क ग्रन्थोंमें सर्वाधिक विवेचित एवं प्रतिपादित इस महत्त्वपूर्ण और अधिक उपयोगी प्रमाणका संव्यवहार कबसे आरम्भ हुआ? दूसरे, ज्ञात सुदूरकालमें उसे अनुमान ही कहा जाता था या किसी अन्य नामसे वह व्यवहृत होता था ? जहाँ तक हमारा अध्ययन है भारतीय वाङ्मयके निबद्धरूपमें उपलब्ध ऋग्वेद आदि संहिता-ग्रन्थोंमे अनुमान या उसका पर्याय शब्द उपलब्ध नहीं होता । हाँ, उपनिषद्-साहित्यमें एक शब्द ऐसा अवश्य आता है जिसे अनुमानका पूर्व संस्करण कहा जा सकता है और वह शब्द है 'वाकोवाक्यम्'२ । छान्दोग्योपनिषद्के इस शब्दके अतिरिक्त ब्रह्मबिन्दूपनिषद्
१. गौतम अक्षपाद, न्यायसू० १।१।३; भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी। २. ऋग्वेदं भगवोऽध्यमि' वाकोवाक्यमेकायनंअध्येमि ।
छान्दो० ७।१।२; निर्णयसागर प्रेस बम्बई; सन् १९३२ ।