Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

View full book text
Previous | Next

Page 424
________________ २२४ श्री जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्यावली Shri Devakumar Jain Oriental Library Jain, Siddhant Bhavan, Arrab Closing I यह चौवालीसमा काव्य मत्र जप पढे ते ममुद्र जिहाज न एवै पारलगै श्रापदा मिट काव्य उद्धत ।। Colophon: अपूर्ण । ६२६. भक्तामर टीका Opening : Closing देखें, ऋ० ६०७ । भक्तामर टीका सदा, पढ़ सुन जो कोई । हेमराज शिवशुख लहै, तरामनव छित होई ।। इति श्री भक्तामरटीका समाप्ता ।। देखें-टि. जि० प्र० र०, पृ० १२३ । Colophon: ६३०. भक्तामर टीका Opening : Closing श्री वर्धमानं प्रणिपत्य मूर्ना दोव्य येत ह्यविरुद्धवाचम् । वक्ष्ये फल तत् वृषभस्तवस्य सूरीश्वरैर्यत् कथित क्रमेण ।। वर्णितः कूमार्मसीनाम्न वचनात्मयकारि च ॥ भक्तामरस्थ सद्वृतिः रायमल्लेन वर्णिता ।। त्रिभिः कुलकम् । इति श्री ब्रह्म श्री सायमल्लविरचित भक्तामरस्तोत्रवृतिः समाप्ता.॥ Colophon 1 ६३१. भक्तामर स्तोत्र टीका Opening | देखें, क्र0 ६०७ । Closing | देखें, ऋ0 ६२६ । Colophon __ इति श्री भक्तामर जी का टीका उक्त वातिक मया बाला हेमराजकृत सपूर्णम् । सवत् १६0 माघसुदी १० वुधवार लिo जमनादास दिल्ली मध्ये धर्मपुरा आरहमल का मंदिर में।

Loading...

Page Navigation
1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531