Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 453
________________ २५३ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhransha & Hindi Manuscripte (Stotra) ७३६. पंचासिकाशिक्षा Openings करि करि आतम हित रे प्राणी। जिन परिणामनि तजि बध होत है। सो परिणति तजि दुखंदानी ॥ करि० ।। Closing ! यह शिक्षापचासिका, कीनी द्यानतराय । पढे सुनै जो मनधर, जन जन को सुखदाय ॥ Colophon: इति श्री पचसिका शिक्षा सम्पूर्णम् । मिती भाद्रपद सुदी ६ सुभवार गुरु सम्वत् १९४७ । ७४०. पंचपदाम्नाय Opening : भक्तिभरामरप्रणत प्रणम्य परमेष्ठी पचकम् । शीर्षण नमस्कारसारस्तवन भणामि भव्याना भयहरणम् ॥ Closing: .. '' भनेन ध्यानेन पायोच्चाट्टनताडननिपुणा साधवः सदा स्मरतः। Colophoran इति पचपदरम्नाय । ७४१. प्रभावती कल्प Opening Closing | Colophone हरिद्रानिवपत्राणि पिप्पली मरिचानि च । भद्रामुस्ता विभमानि सप्तम विश्व भेषजम् ॥ ॐ अटेवी स्वाहा गुटिका प्रयुञ्जनमत्र । इति प्रभावती कल्पा। श्रीरस्तु । देखें-जि० १० को०, पृ० २६६ । ७४२. प्रार्थना स्तोत्र त्रिभुवनगुरो जिनेश्वरपरमानदककारणम् । कुरुष्वमपि किंकरेत्रकम्णा तथा यथा जायते मुनि ॥१॥ Opening:

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