Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 505
________________ Catalogue of Sanskrit, Prakrite Apabhratisha & Hindi Manuscripts Colophon : इति प्रतिष्ठाविधि सपूर्णम् । सवत् १९०९ का मि० चैत २०६ शनि । श्री। ६१६. प्रकृतन्हवण .. Opening । Closing जो इह गगा पाणी ण, सुछेण वि विमलेण। - - जिण न्हावेह आनन्द जु, सुह पावेइ अचिरेण ॥ hor मायगतुरगहण सरह रहधरचामरिपरि चेयालियद्यकलमैयल महिलोल रहिणराहि उणीयरयो । ..पत्तोसि, समवसरणे असुइ हरण वियकालवारणम्, "" मयराण ण विणत्ते मुक्ताहल मालालुलेय तोरणम् ॥ । . . Colophoni ६१९. पुण्याहवाचन . -Opening, . . . श्री शातिनाथममरासुरमूत्तिनाथ, . . . . . .भास्वकिरीटमणिदीधति पादपद्मम् । .. प्रैलोक्यशातिकरण प्रणम्य, ". होमोत्सवाय कुममांजलिमुक्षिपामि ॥ . Closing : ' ' श्री शातिरस्तु शिवमस्तु जयोस्तु नित्यमारोग्यमस्तु तवपुष्टि 'समृद्धिरस्तु कल्याणमस्तु सुखमस्तु सतानाभिवृद्धिरस्तु दीर्घायुरस्तु कुल गोत्र धन तथास्तु । . Colophon ' ' इति पुण्याहवाचन सम्पूर्णम् FF THI ६२०..पुण्याहवाचन Opening ! . देखें, ०९१९ । Closngi : मुलगोत्र घन तथास्तु । ..., Colophone . इति पुण्याहवाचन सपूर्णम् । समाप्ताः ॥ श्री संवत् १८६६ शकि १७३२ प्रमोद नमिसध्वरे श्रावणमासे शुफ्लपक्षेषष्टम्या 'लिखित- करिजान- गरे द देवमनः रोय स्वपठेनार्य

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