Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 527
________________ ३२७ Catalogue of Sanskrit, Prakrit. Apabhramsha & Hindi Manuscripte ( Puja-Patha-Vidhāna) ६६२. द्विजवदनचपेट Opening | वेदा प्रमाण स्मृतय प्रमाण धमार्थयुक्त वचन प्रमाणम् । नैतत्त्रय यस्य भवेत्प्रमाण कस्तस्यकुर्याद्वचन प्रमाणम् ॥ स्नान च वेदेव गृहाश्रिताना.सर्गा । नही है। Closing | Colophon: , ९९३. लोकानुयोग Opening : नमस्कृत्य महावीर सर्ववस्तूपदेशम् । अधोमध्योर्ध्वलोकाना स्वरूप किंचिदुच्यते ॥ Closing: - धर्मभ्यान धवलमुदित मोक्षहेतुजिनेन्द्र आज्ञापायप्रभृतिविचयश्चिवृत्तनिरोध । यत्कार्यानितकरणलॊकसस्थानचिता, मदाबान्ता स्वहृदयमहेमेंद्रयाश्चाविधेयाः ।। Colophon: इति लाकानुयोगे जिनसेनाचार्यकृत हरिवसपुराणातहिनि कामिते उर्ध्वलोकवर्णनो नाम तृतीय सगं समाप्त:। सम्वत् १९८६ ज्येष्ठ शुक्ल श्रुत ५ गुरुवासरे श्री जैन सिद्धान्त भवन आरा के लिए प० भुजवली शास्त्री की अध्यक्षता में श्री काशी निवासी वटुक प्रसाद लेखक ने लिखा। विशेष-प्रशस्ति के अनुसार यह ग्रन्थ हरिवंश पुराण का बग है। देखें-(१)Catg. cf Skt. & Pkt. Ms., P.688. ९६४. मडल चिन्तामणि ' मडल का चित्र। ९९५. मुनिवंशाम्युदर्थ Opening. श्रीमुनिवद्य दिव्यध्वनिगधिप महामहिमाकरनिरष। प्रेमदोन-तरगदोलिह महास्वामि परज्योतिरूप ॥

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