Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 508
________________ ३०८ श्री जैन द्विान्त भवन ग्रन्थावली Shri Devakumor Jain Oriental Library Jain Siddhant Bhuvan, Atrah " ९२८ नत्रयं पूजा उदै यापन Opening I श्रीवर्द्धमानमानम्य गौतमादीश्च सद्गुरूम । • रत्नत्रयविधि-वक्ष्ये यथाम्नाय विमुक्तये । Closing : इत्य चारित्रमाला वैः कठे यो.विदधाति च। शोभाविनितरा नूनं शीघ्र मुक्तिारमापतिः ।। Colophon: इति विशालकीर्यात्मजो-भष्ट्रारक श्री विश्वभूषण विरचिते रत्नत्रयपाठोद्यापन पूजा समाप्ता। शुभम् । देखें-(१) दि० जि० अ० र०, पृ० १६३ । (३) जि०,२० को०, पृ. ३२७ । (३) आ. सू०, पृ० १२१॥ (४) रा०-सू० 111, पृ० १५६, ३०६, ३०६ । ९२९. रत्नत्रय, पूजा Opening.,'. Cloning यणद सुरगिरि संसि रविहिं जावतारणरकतर। रयणत्तय जतसघ सयल' विरु सगल होऊ पवतइ.' Colophon: इति श्री रलत्रयपूजा जयमाल सपूणम् । विशेष -सवत् १९४० में पंचायती मदिर आरा में बढाया गया। ६३०. रत्नत्रय पूजा, Opening I ., .देखे, क्र.६७ Closing: तद्विसर्जनद्वार प्रक्षालनात. पुष्पादिक मनुष्ठातृभ्यः तदनुमोदकेभ्यश्च वितीय शातीमामधीयान्' ' ' समतात्पुष्पाक्षत विकरेत् ॥ Colephon: इति श्री चरित्र पूजा संपूर्णम् समाप्ता। .:. १३१. रत्नत्रय जनमोल ___c.. Openings पाणवे प्पिण भाव विमलसहावे वीर जिणि दुगुणीह णिहि । मुरु गणेहर भाषिउँ विवह पयासिउ रगत्तय .. - सुविहीण विहि ॥

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