Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 517
________________ ३१७ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts (Puja-Patha-Vidhana) Closing Colophop : काल भनत एफ समराजे । सुरनर नृप प्रणमे निज काजे ॥ नही हैं। ९६२. सिद्धचक्रवताख्यान Opening सिद्धार्य सिद्धये नत्वा मिसिद्धार्थनदनम् । सिद्धचक्रपताख्यान, ब्रुवे सूत्रानुसारत ॥ परवादी भविदारण के मरिहरि तीवनस्ततो । Closing : Colophoni नहीं है। ९६३. शिखर माहात्म्य Opening : Closing : Colophon: देखे ऋ० १४१ । देखें, *. ६४१ । । देखें, ३० ६४१॥ बैशाखमाने कृष्ण पक्षे तियो : भौमवासरे मवत् १९३५ । ६६४. सिहासन प्रतिष्ठा Opening : श्री मीरजिनेशान प्रणिपत्य महोदयम् । मध्यज्ञानस्य सूत्रेण शुद्धि वक्ष्ये यथागमम् ॥ Closing : मलक्षय लुनिकोष्टिरोगविषमग्रहक्षयं कुर्वते । श्री मस्पार्वजिनेद्रपादयुगल ध्यानस्य गोदकम् ॥ colophon: इति शांतिधारा मपूर्णम् । इति मिहाननप्रतिष्ठा सम्पूर्णम् । शुभमस्तु । परितपरमानन्देन रचितमिदम् । श्री भय पुण्याह कलश स्थापनम् । भवतेन पोतेन प लोहितेन, धर्मानुगगात् प्रविम्पिनेम । जिनस्य मत्रेण पवित्रनेन, मूषण कुभ मतिवेप्टयामि ।। * नमो भगवते अमिलाना ही ह्रा ही समोपट निरर्प सूत्रेप माति म नेप्टयामि ।

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