Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 521
________________ Catalogue of Sanskrt Pral tit, Apabhramaha & Hindi Manuscripts ( Puja-Patha-Vidhāna ) ६७३. तीस चांबीसी पूजा Opening : Closing Colophon 1 Opening Closing : Colophon : Opening! Closing t Colophon ...... इति श्री तोमी का पाठ सम्पूर्णम् । मासे उत्तममासे मागमा कृष्ण शुक्रवारे मयत् १६१३ मे लिपी जुगी मल्ल, transcarrint कारम गोत्री पत्नीवार नवायगज के वामी ने लिखी नेमिनाथ चैत्यालये परिपूर्ण करी लनापुरी मे | ७७. त्रिकाल चतुविनि पूना तान् श्री निर्ममत सुमिद्ध व सिवत सदाही, तूरकरे जिनसामन उपत जागो मिय्यानम दूरी नसाही । द्वापरं श्रुत केयसि माघ सर्व प्रयरत्न धराही, पइतं परमेष्ठि महामवि जीवनको नित मगल दाही || छ र गत अगन की, भेद न जानो सार । पति गुनी सुपारियो, हिमा भाव उरधार ॥ मूर्तादिका लोहित भव्यपुण्यदाराधितायेत्रसुरेन्द्र वृ दैः ॥ पचकल्याणविभूतिभाजनीयं करान् मप्रितमचयामि ॥१॥ . अंतिसमाहि दिशति पहुजिणधम्मरत६ ॥ गुरुपडिमत्तइ भाविय हसति करेहु लहु ॥ ॥ इति त्रिकाल पूजाविधि समाप्ता ॥६०॥ ७८. त्रिलोकसार पूजा 1 ३२१ वर्दी पांचो परमगुरु नमि जिनवाणी पायतोनलोक जिनवन को पूज रचों सुखदाय ॥ जो यह पाठ विचारि अकृत्रिम कृत्रिम गेहन को सुखदाई । तीन लोकजिनेन्द्र जर्ज अतिप्रीति करं बहु भक्ति बढ़ाई ॥ सो नर-लोकहि देव सुलोक-महीसुख भोगि अनुक्रम थाई । F मुक्तितिया पति जानि इर्म निति पूज करो जिन राजसु भाई ॥ इत्याशीर्वाद । इति श्री त्रिलोकसारपूजा पडित महाचद्र विरचिता समाप्तः ॥ फाल्गुन मासे । शुक्लपक्षे तिथों १२ भृगुवासरे संवत् १९५४ | श्री ।


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