Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 522
________________ ३२२ थी जैन सिद्धान्त भवन प्रन्थावली Shri Devakumar' Jain Oriental•Library, Jain Siddhant Bhavan, Arena १७९, त्रिलोकसार विधान , Opening । । । करजुग जोरो जिन प्रथम और मुनीन्द्र मनाय। । । द्वादशागमय जिनवधन नमो सीस निजनाय ॥ Closing ___ एक शहस्त्र अरु नव शतक ऊपर सार सवत्सर कहा । शुभमास फाल्गुण शुक्ल तेरस दीप नदीश्वर लहा ।। ___ अष्टम सुदीप सुरेशपूजा नृत्यधुनि जे जे करथी।' सो हरष सहि वह दिक्स पावन पूर्ण करि निज हिय धरयो ।। Colophon: । इति श्री लोकसार पाठ भाषा पूजन जवाहिरलाल विर. चितम समाप्तम् । शुभम् सवत् १९६४ माघ शुक्ल ५ लिखितमिदम् । । । ६८०. वज्रपंजराधना विधान . चद्रनाथस्याभिषेक भूमिशुद्धि पचगुरुपूजा पत्ताया Opening: . . चद्रपुरावुधि चद्र चद्रार्क चद्रकांतमकाशम् । चद्रप्रभाजिनमचे कुदेदुस्फार कीर्तिकाताशारा ॥ . . . . Closing : यस्यायं क्रियते पूजा सुप्रीतो नित्यमास्तुते। औ ह्रीं रर र र ज्वालामालिनि हो आ को क्षी ही क्ली ब्लू वा वी हलवग्यूं ह्रीं ह्रीं ह्र" ह्रीं ह्रज्वल ज्वल प्रज्वल =धग = धू "धूमधि कारिणि शीघ्र यंत्राधिपतये देवदत्तस्या स्वग्रहोच्चाटन कुरू हूँ फटनमः . स्वाहा । - - - - - -" or , . . rain' Colophon; • इति वजपंजराराधना समाप्तीभूत। प्रशस्ति संग्रह (श्री ' जन सिदान्त भवन) द्वारा प्रकाशित पृ० ८ मैं सपादक भूजवली .. शास्त्री में ग्रंथों के बारे में लिखा है-इस में ग्रथ कर्ता का कोई - -- -म्पष्ठ उल्लेख नहीं है। किन्तु मध्यभागं गत लोक से ज्ञात' होता। " कि इसके रचयिता श्री पद्मनदी है । मगर पता नहीं कि यहपपनदी कौन है। क्योकि इस नाम के अनेक 'अन्धकार हुए हैं। दिनम्बर _

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