Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 518
________________ '३१८ श्री जैन सिद्धान्त भवन प्रत्यावसी bhri Devakumar Jain Oriental Library Jain. Siddhant Bhavan, Arri Opening : Closing : Colophon : 1 Opening Closing Colophon Opening Closing t Colophon ६५. सोनह कारण जानाला जम्मवुहितारण कुगद निवारण सोलहकारण शिवकरण पण विवि थुई भास मिसत्तिपयासमितिच्छ्यरतुलद्धिधरण ॥ सोलहमउम गुणइ य धुणविग्धु तारइ । जो जिण पाइ विदसणु आयरवि, तवहो इयुणुविशोतिथयरू ॥ इति श्री सोलाकारण जीकी सोला जयमालसपूर्णम् । मिती कार (कात्तिक) शुक्ला ३ सवत् १६५२ हस्ताक्षर गोविंद सिंह वर्मा | शुभ भूयात् । ९६६. सो कारण उद्यापन अनन्तसौख्य पदद विशाल पर गुणोध जिनदेव्यमेव्यम् । अनादिकाल प्रभव व्रतेश त्रिधाह्वाये षोडषकारण वै ॥ कते पिरोधपूजायामूलसघविदाग्रणी । सुमतिसागरदेवश्रद्धाषोडशकारणे । इति श्री षोडशकारणोद्यापनपाठः । ε६७. सुदर्शन पूजा जबूदीप मझार राजत भरतराज अपार है । देशपाटलिपुत्र प्रणमी पुण्य पूजागार है ॥ मोक्ष मालागरहि डारला सेठ सुर्दशन है बली, ममहृदयसरिता समनमागर दुःखदारन को चली ॥ Y छन्दशास्त्र जानी नहीं, क्षमं सुकविवर जान । भावभक्ति पूजन रच्यो आरा शुभ स्थान ॥ शुभ सम्वत् रचना रची, शत उन्नीस पचाल । मलमास तिथि पचमी अषाढ कृष्ण सुखरास ॥ इति श्री सेठ सुदर्शन पूजा सम्पूर्णम् ।

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