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श्री जैन सिद्धान्त भवन प्रत्यावसी
bhri Devakumar Jain Oriental Library Jain. Siddhant Bhavan, Arri
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६५. सोनह कारण जानाला
जम्मवुहितारण कुगद निवारण सोलहकारण शिवकरण पण विवि थुई भास मिसत्तिपयासमितिच्छ्यरतुलद्धिधरण ॥
सोलहमउम गुणइ य धुणविग्धु तारइ । जो जिण पाइ विदसणु आयरवि, तवहो इयुणुविशोतिथयरू ॥
इति श्री सोलाकारण जीकी सोला जयमालसपूर्णम् । मिती कार (कात्तिक) शुक्ला ३ सवत् १६५२ हस्ताक्षर गोविंद सिंह वर्मा | शुभ भूयात् ।
९६६. सो कारण उद्यापन
अनन्तसौख्य पदद विशाल पर गुणोध जिनदेव्यमेव्यम् । अनादिकाल प्रभव व्रतेश त्रिधाह्वाये षोडषकारण वै ॥
कते पिरोधपूजायामूलसघविदाग्रणी । सुमतिसागरदेवश्रद्धाषोडशकारणे ।
इति श्री षोडशकारणोद्यापनपाठः ।
ε६७. सुदर्शन पूजा
जबूदीप मझार राजत भरतराज अपार है । देशपाटलिपुत्र प्रणमी पुण्य पूजागार है ॥ मोक्ष मालागरहि डारला सेठ सुर्दशन है बली, ममहृदयसरिता समनमागर दुःखदारन को चली ॥
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छन्दशास्त्र जानी नहीं, क्षमं सुकविवर जान । भावभक्ति पूजन रच्यो आरा शुभ स्थान ॥ शुभ सम्वत् रचना रची, शत उन्नीस पचाल । मलमास तिथि पचमी अषाढ कृष्ण सुखरास ॥ इति श्री सेठ सुदर्शन पूजा सम्पूर्णम् ।