Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 513
________________ १३१३ Catalogue of Sanskrt Prakrit, Apabhramsha & Hindi Manuscripts Puja-Patha-Vidhana) Closing 1 श्री गच्छे मूलसघे जतियतितिलको जो भवत् कुदकुदा-, तस्पट्ट ज्ञानभूयाश्रुतजलधिरिव श्री जगत्भूषनाख्यः । • तत्पट्ट भूरिभागी कविरसरसिक विश्वभूषणकवेन्द्रः, तेनेद पाठपूर्व रचित सुललित भव्यकल्याणकारी ।। इति सप्तऋषिको पाठ विश्वभूषणकृतममाप्त ९४७. सप्तर्षि पूजा . Colophon : Opening! देखें, ऋ० १४६ । Closing ! देखें, क्र० ६४६ । . Colophon: ____ इति श्री भट्टारकविश्वभूषणकृत सप्तर्षि पूजाविधान समाप्तम् । सवत् १६५१ मिति वैशाख कृष्ण परिवा को शीतलप्रसाद के पुत्र विमलदास ने चढाया। ९४८. सप्तर्षि पूजा Opening ! देखे, ऋ० ९४६ । । Closing | देखें ऋ० ६४६ । Colophone इति श्री भट्टारक विश्वभूषण कृत सप्तर्षिविपूजन विधान समाप्तम् । चैत्रमासे कृष्णपक्षे तिथौ १४, सवत् १९५६ । श्रीरस्तु । ९४९. षट्चतुर्थ जिनार्चन Opening ! नमोनेकातरचनाविधायिनो जिनेद्राय नमः । अथ षट्चतुर्थ ___ वर्तमानजिनार्चन समुदीरयामः यश. समानदति विष्टयत्रय " । Closing | शिवाभिरामायशिवाभिराम, शिवाभिरामाशिवाभि- रामः । शिवाभिरामप्रदक भजत्व, मुहुमुहुः भेविद किं वदामि ॥ Golophon: ____ इति श्री षट्चतुर्थवर्तमानाचर्चाशिवाभिरामावनिपसुनुकृता, भूततरेय समाप्त । सवत् १९३८ साल मिति कार्तिक वदी ११ वुध वार के दिन समाप्त हुआ।

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