Book Title: Jain Siddhant Bhavan Granthavali Part 01
Author(s): Rushabhchand Jain
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara
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२५५ Catalogue of Sanskrit, Prakrit, Apabhramsha & ITind: Manuscripts
(Stotra)
निर्माण समहोत्तमागमुफत प्रस्फुत्तम पराकृद्धि वृद्धिमनारन जिनरत: जिनपग फुर्वन्तु य सयंदा ।
७४६. अपिमंडल स्तोत्र
Opening Closing?
नाधार ... on मन्यितम् ॥१॥ शतमष्टोत्तर प्राप्तयें पठन्ति दिन दिने । नेपा न ध्याधयो दो प्रभवं ... . ।।
Colophont
-(१) दि० जि०० २०.१० १७ ।
(7) Catg. or St. & Pkt. Ms., P.629.
७४७. मायमडल स्तोत्र
Opening
Closing Colop on i
में- म०७४। य यधिन .. - रक्षतु मयंत ॥६॥ महो।
Opening :
Closing 1 Colophon :
७४८. त्रिकालजन रान्ध्यावंदन अली अहं क्षमा 3 3. उपवेशनभूमिपुद्धि करोमि स्वाहा । . . . मत्र श्री जनमत्र जपजपजपित जन्मनिर्वाणमत्रम् ।। हसि निकालनमध्यावदन सम्पूर्णम् ।
Opening |
७४६. सहस्त्रनामाराधना
सुधामपूजित पूज्य सिद्ध शुद्ध निरजनम् । जन्मदाहविनाशाय नौमि प्रारब्ध सिद्धये ।। तदकजा ममस्कुर्वे शारदा विश्वशारदाम् । गोतमादि गुरुन् सम्यक् दर्शनशानमडितान् ।२। विशालकीतिरपुण्णमूतिः शतेंद्राचतिपादप । श्रीमज्जिने सुसहस्त्रनामा जिनेश्वरः पातु सा भन्यलोकान्।
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